Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ० अरिष्टनेमिजी--पूर्वभव
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आम्रवृक्ष देखा था, साथ ही एक पुरुष को यह कहते सुना था कि--"यह वृक्ष तुम्हारे आंगन में लगेगा और क्रमशः नौ स्थानों पर लगता रहेगा और उत्तरोत्तर फलदायक होता रहेगा।" इस स्वप्न के फलस्वरूप हमने पुत्र जन्मरूप फल तो प्राप्त कर लिया, किन्तु स्वप्न में देखा हुआ आम्रवृक्ष क्रमशः नौ स्थानों पर आरोपित हो कर विशेष-विशेष फलदायक होगा--इसका क्या अर्थ है ?"
राजा का प्रश्न सुन कर मुनिराज ने अपने प्रत्यक्ष ज्ञान का उपयोग लगाया और अन्य स्थल पर रहे हुए केवली भगवान् से मौन प्रश्न किया। फिर भगवान् प्रदत्त उत्तर जान कर कहा;--
"राजन ! तुम्हारा पुत्र धनकुमार इस भव से लगा कर उत्तरोत्तर नौ भव करेगा और नौवें भव में यादव-कुल में बाईसवें तीर्थङ्कर होंगे।"
पुत्र का अपूर्व भाग्योदय जान कर राजा-रानी तथा समस्त परिवार प्रसन्न हुआ और सभी की जिन धर्म के प्रति श्रद्धा में वृद्धि हुई । राजकुमार, युवराज्ञी के साथ सभी ऋतुओं के अनुकूल क्रीड़ा करता हुआ काल-यापन करने लगा।
एकबार युवराज, पत्नी के साथ जल-क्रीड़ा करने सरोवर पर गया। वहाँ अशोक वृक्ष के नीचे एक मुनि मूच्छित हुए पड़े थे । वे प्यास के परीषह से पीड़ित थे। उनका कंठ सूख रहा था, ओठों पर पपड़ी जमी हुई थी, पाँवों में हुवे घावों से रक्त बह रहा था। युवराज्ञी की दृष्टि मुनिराज पर पड़ी। उसने कुमार का ध्यान मुनि की ओर आकर्षित किया। दोनों पति-पत्नी ने शीतोपचार से मुनिजी को सावधान किया । वन्दना करके कुमार कहने लगा;--
"महात्मन् ! मैं धन्य हूँ कि मैने आप जैसे साक्षात् धर्म को प्राप्त किया, अन्यथा इस प्रदेश में आप जैसे महात्मा के दर्शन होना ही असंभव है । प्रभो ! आपकी इस प्रकार दशा कैसे हो गई ? आपको इस दुःखद स्थिति में किसने डाला?"
"देवानुप्रिय ! सिवाय कृतकों के और कौन दुःख-दायक हो सकता है ? वास्तविक दुःख तो मुझे संसार के चक्र में उलझे रहने का है । वर्तमान दशा का बाह्य कारण विहारक्रम है । मैं अपने गुरुदेव तथा साधुओं के साथ विहार कर रहा था, किंतु मैं भूलभुलैया में पड़ कर भटक गया और भूख-प्यास से आक्रान्त हो कर यहाँ आ कर गिर पड़ा । मेरा नाम मुनिचन्द्र है । हे महाभाग ! तुम्हारी सेवा से मैं सचेत हो कर बैठा हूँ। यह संसार दुःखों का भण्डार है । इससे मुक्त होने के लिये धर्म का सम्बल अवश्य लेना चाहिए।" आदि ।
मुनिराज के उपदेश से प्रभावित हो कर दम्पत्ति ने सम्यक्त्व सहित अगार-धर्म
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