Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भ. अरिष्टनेमिजी--पूर्वभव
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लिए आतुर हो गया, किंतु अनुकूल संयोग के अभाव में निराशा एवं उदासी से उसका चन्द्रमुख ग्लान हो गया । वह खान-पान-स्नानादि भूल कर शयनागार में अपनी शय्या पर ही पड़ी रहने लगी। राजकुमारी की इस दशा का कारण उसकी प्रिय सखी कमलिनी जानती थी। उसने कहा
"सखी ! मैं तेरी उदासी का कारण समझती हूँ। तेरे आकर्षण का केन्द्र एक उत्तम पुरुष है और वह तेरे लिए सर्वथा उपयुक्त है। तू चिन्ता छोड़ दे । मैने एक ज्ञानी से पूछा था। उसने कहा कि "तेरी सखी का मनोरथ शीघ्र ही पूर्ण होगा। अब तू चिन्ता छोड़ कर स्वस्थ होजा।"
सखी की बात से राजकुमारी प्रसन्न हई और शय्या से उठ कर शारीरिक नित्य-क्रिया में लग गई । जब वह अपने पिता को प्रणाम करने गई, तो पिता का ध्यान पुत्री के शारीरिक विकास की ओर गया । राजा, पुत्री के योग्य वर की प्राप्ति के लिए विचार कर ही रहा था कि राजदूत ने उपस्थित हो कर राजा को प्रणाम किया। राजा ने इस दूत को अचलपूर नरेश विक्रमधन के पास भेजा था। दूत ने अपने कार्य का ब्योरा सुनाया। तत्पचात् नरेश ने पूछा ;--"तेने उस राज्य की विशेषता या वहां कोई उत्तम वस्तु देखी
है क्या ?"
"महाराज ! मैंने युवराज धनकुमार को देखा तो दंग रह गया। उनके अलौकिक रूप एवं उत्तम गुण का नमूना अन्यत्र नहीं मिल सकता। विद्याधरों और देवों में भी वैसा रूप नहीं मिल सकता । मैने तो यह भी सोचा है--महाराज ! कि अपनी राजकुमारी के लिए युवराज धनकुमार ही उत्तम वर हो सकता है।"
राजा यह सुन कर प्रसन्न हुआ। उसने राजदूत की प्रशंसा करते हुए कहा;__ " तुमने बहुत अच्छा सोचा। अब तुम स्वयं शीघ्र ही अचलपुर जाओ और मेरी ओर से नरेश से सम्बन्ध की याचना करो।"
जिस समय राजा और दूत के बीच उपरोक्त बात हो रही थी, उस समय राजकुमारी की छोटी बहिन चन्द्रावती वहीं उपस्थित थी। उसने यह बात राजकुमारी धनवती से कही। धनवती इस समाचार से प्रसन्न हुई । उसने अपनी सखी के द्वारा दूत को अपने पास बुलाया । दुत से अचलपुर जाने का कारण जान कर राजकुमारी ने एक पत्र धनकुमार के नाम लिख कर राजदूत को दिया । दूत ने राजा विक्रमधन के समक्ष उपस्थित हो कर प्रणाम किया। दूत को सामने देख कर नरेश चकित रह गए और पुनः शीघ्र आने का कारण पूछा । दूत ने विनयपूर्वक सिंह नरेश द्वारा सम्बन्ध स्थापित करने की प्रार्थना
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