Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
इस प्रकार रामभद्रजी अनेक प्रकार से करुणापूर्ण वचन बोलते हुए लक्ष्मणजी के सिंहासनासीन शरीर के सामने बैठ कर विविध प्रकार से मनौती करने लगे । रामभद्रजी की ऐसी दशा देख कर विभीषणजी आदि गद्गद् स्वर से समझाने लगे; --
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" हे स्वामी ! आप पुरुषोत्तम हैं, धीरवीर हैं। आपको इस प्रकार मोह में डूबना नहीं चाहिए | अब आप सावधान बनें और लक्ष्मणजी के शरीर की लोक- प्रसिद्ध उत्तरक्रिया करने की तैयारी करें। अब इस शरीर में आत्मा नहीं रही। वह अपनी स्थिति पूर्ण कर चली गई । जो जन्म लेता हैं, वह एक दिन अवश्य मरता है । धीरजन ऐसे वियोग के दुःख को शांति से सहन करते हैं । आप यहाँ से दूसरे कक्ष में चलिये | अब इस शरीर की संस्कार - विधि प्रारम्भ करवाएँगे ।
रामभद्रजी यह बात सहन नहीं कर सके । भ्रकुटि चढ़ा कर क्रोधपूर्ण स्वर में
बोले;
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" दुष्टों तुम्हें भी क्या मुझ से शत्रुता है ? तुम लक्ष्मण को मरा हुआ कहते हो ? तुम्हें दिखाई नहीं देता कि यह रूठा हुआ है ! यह हजारों को मारने वाला वीर भी कभी मर सकता है, और मुझे छोड़ कर ? तुम धृष्ट हो। तुम भी मुझसे वैर रखते हो। मैं तुम्हारी इस अधमता को सहन नहीं करूँगा । यदि अग्निदाह करना है, तो तुम्हारा ही सपरिवार होना चाहिए। मेरा भाई तो जीवित है। यह दीर्घायु है । मुझ से पहले यह नहीं मर सकता । यह मुझ से रूठ गया है । में इसे मनाऊँगा । हे प्रिय लक्ष्मण ! बोल, शीत्र बोल । तेरे रूठने से इन सब दुर्जनों का साहस बढ़ गया है । अब तुम्हारा मौन रहना ठीक नहीं । तुम अपने कोप को दूर करो और प्रसन्न होओ। चलो, अपन यहाँ से कहीं दूर वन मैं चलें । वहाँ इन दुष्टों की छाया भी न पड़ सकेगी। मैं एकान्त स्थान में तुम्हें मनाऊँगा । " इस प्रकार कह कर रामभद्रजी ने लक्ष्मणजी को कन्धे पर उठाया और चल दिये । वे लक्ष्मण के शरीर को स्नानगृह में ले जा कर स्नान कराने लगे, फिर चन्दन का विलेपन किया; वस्त्राभूषण पहिनाये और अपनी गोद में ले कर चुम्बनादि करने लगे। कभी भोजन का थाल मँगवा कर खाने का आग्रह करते, कभी पलंग पर सुला कर पंखा झलते, कभी पाँव दबाते और कभी कन्धे पर उठा कर चलते । इस प्रकार मोह में भान भूल कर, वे भाई के शव को ले कर घुमने लगे । इस प्रकार करते छह महीने बीत गए । लक्ष्मण का देहावसान और राम की विक्षिप्त जैसी दशा का समाचार पा कर इन्द्रजीत और सुन्द राक्षस के पुत्रों तथा अन्य खेचर शत्रुओं ने राम को मारने के विचारः से, सेना ले कर अबोध्या के निकट आये और घेरा डाल दिया । जब रामने शत्रु
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