Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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राम का मोह भंग, प्रव्रज्या और निर्वाण
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सेना से अयोध्या को अवरुद्ध पाया, तो उन्होंने लक्ष्मण के शव को गोद में ले कर अपना धनुष सम्हाला और आस्फालन किया। उस वज्रावर्त धनुष ने अकाल में भी संवर्तक मेघ की वर्षा की । उस समय राम के पूर्व स्नेही जटायुदेव का आसन चलायमान हुआ । वह कुछ देवों के साथ वहाँ आया । देवों को राम की सहायता में आया देख कर, शत्रु भयभीत हुए और घेरा उठा कर चले गये । साथ ही इन्द्रजीत के पुत्रों आदि कई प्रमुख व्यक्ति, संसार से विरक्त हो कर, अतिवेग नाम के मुनिराज के पास प्रव्रजित हो गए। जटायुदेव ने राम का भ्रम दूर करने के लिए युक्ति रची। वह सूखे हुए वृक्ष के ठूंठ के मूल में पानी डाल कर सिंचन करने लगा । यह देख कर राम उसकी मूर्खता पर खीजे और बोले- - ' अरे मूर्ख कहीं सूखा ठूंठ भी हरा होता है ?" देव बोला - " यदि सूखा हुआ ठूंठ हरा नहीं होता, तो मरा हुवा मनुष्य भी कभी जीवित होता है ? " राम देव की युक्ति पर ध्यान नहीं दिया और आगे चलने लगे । कुछ दूर चलने के बाद उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति पत्थर की शिला पर कमल उगाने का प्रयत्न कर रहा है। राम ने उसकी मूर्खता का भान कराने के लिए कहा, तो उन्हें भी वैसा ही उत्तर मिला । आगे चलने पर उन्हें एक किसान मरे हुए बैल के कन्धे पर हल का जुआ रख कर खेत जोतने का प्रयत्न करते हुए दिखा । उसके बाद एक तेली को घानी में रेत डाल कर तेल निकालने की चेष्टा करते हुए देखा । उनके उलट प्रश्न से भी राम का भ्रम दूर नहीं हुआ । उस समय उनके कृतांतवदन सारथी के जीव-देव ने अवधिज्ञान से रामभद्रजी की दशा देखी, तो वह भी उन्हें बोध देने के लिए आया और मनुष्य रूप में एक स्त्री के शव को कन्धे पर उठाये और प्रेमालाप करते हुए उनके सामने से निकला । रामभद्रजी ने उसे टोका --" अरे मूर्ख ! तेरे कन्धे पर स्त्री का मुर्दा शरीर है । इसमें प्राण नहीं रहे । इससे प्रेमालाप करना छोड़ कर इसकी उत्तर- क्रिया कर दे ।"
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-"नहीं, आप झूठ बोलते हैं, यह मेरी नहीं मर सकती । यह मुझ से रूठ गई है । मैं इसे --" अरे भोले ! यह जीवित नहीं, मरी हुई है । अब यह किसी भी प्रकार जीवित नहीं हो सकती । कोई देव-दानव और इन्द्र भी इसे जीवित नहीं कर सकता । तू मूर्खता छोड़ कर इसकी अंतिम क्रिया कर दे"-- राम ने उसे समझाया ।
-- क्या मैं मूर्ख हूँ, बेभान हूँ ? फिर आप अपने कन्धे पर क्या जीवित मनुष्य को ढो रहे हैं ? महानुभाव ! इतना तो सोचो कि यदि लक्ष्मण जीवित होते, तो आपके कन्धे पर रहते ? आपको पिता के समान पूज्य मानने वाले, आपके कन्धे पर चढ़ते ? इनके
प्राणप्रिय पत्नी है । मुझे छोड़ कर यह मनाऊँगा " - देव बोला ।
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