Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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हनुमान का मातामह से युद्ध
"हे देवी! रामभद्र तुम्हारे वियोग से अत्यन्त पीड़ित हैं और तुम्हारा ही ध्यान करते रहते हैं । हे जीवितेश्वरी ! मेरे वियोग से तुम दुःखी तो होगी, किन्तु जीवन के प्रति निराश हो कर मृत्यु से प्रीति मत कर लेना । तुम विश्वास रखना कि थोड़े ही दिनों में लक्ष्मण के हाथों रावण की मृत्यु हो जायगी । हम इसी कार्य में लगे हुए हैं । और वीर हनुमान ! लौटते समय सीता का चूड़ामणि मेरे संतोष के लिए ले आना ।"
" प्रभो ! मैं कृतार्थ हुआ। किंतु जबतक में लौट कर नहीं आऊँ, तबतक आप यहीं -- इसी स्थान पर रहें। मैं यहीं आऊँगा ।"
हनुमान एक शीघ्रगति वाले विमान में बंठ कर लंका की ओर उड़ चले ।
हनुमान का मातामह से युद्ध
में
लंका की ओर जाते हुए मार्ग में महेन्द्रपुर नगर आया । इस नगर पर दृष्टि पड़ते ही हनुमान को स्मरण हो आया कि यह मेरे मातामह (नाना) का नगर है । मेरे नाना और मामा ने विपत्तिकाल में मेरी माता को आश्रय नहीं दे कर अपमान पूर्वक निकाल दिया था। उनका क्रोध जाग्रत हुआ । उन्होंने आवेश में आ कर रणवाद्य बजा दिया और युद्ध की स्थिति उत्पन्न कर दी । हृदय एवं पर्वतों को कम्पित करने वाला हनुमान का युद्ध घोष सुन कर महेन्द्र नरेश और उनके पुत्र तत्काल सेना ले कर आ गये । भयंकर युद्ध हुआ । हनुमान सर्वत्र घूम-घूम कर शत्रु सैन्य का दलन करने लगा । महेन्द्र नरेश का ज्येष्ठ पुत्र प्रसन्नकीर्ति भी वैसा ही पराक्रमी योद्धा था । उसका सामना करने हनुमान को बहुत समय लगा। उन्हें विचार हुआ- " मैं स्वामी के कार्य के लिए लंका जाते हुए, मार्ग में ही दूसरे झगड़े में उलझ गया । यह मेरी भूल हुई। फिर यह तो मेरे मामा हैं । किंतु अब तो युद्ध जीत कर ही आगे बढ़ा जा सकेगा ' - इस प्रकार विचार कर हनुमान ने विशेष शक्ति से प्रहार किया और प्रसन्नकीर्ति को चकित करते हुए उसके रथ को तोड़ दिया तथा उसे पकड़ लिया और अन्त में महेन्द्र राजा को भी पकड़ लिया । युद्ध रुक गया। इसके बाद महेन्द्र नरेश और प्रसन्नकीर्ति युवराज को मुक्त कर के उनके चरणों में प्रणाम किया और अपना परिचय दिया, तथा क्षमा याचना की । अपने दोहित्र और भानेज को ऐसा उत्कट पराक्रमी योद्धा जान कर, महेन्द्र नरेश और प्रसन्नकीर्ति आदि प्रसन्न हुए । उन्होंने कहा - " हमने तुम्हारे पराक्रम की बातें सुनी अवश्य थी, परंतु आज प्रत्यक्ष देख कर हमें बहुत प्रसन्नता हुई । अब राज्य महालय में चलो।"
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