Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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राम-लक्ष्मण की रावण पर चढ़ाई और समुद्र और सेतु से लड़ाई
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लिए है । यदि अब भी तुम नहीं समझे, तो निश्चय समझो कि उन्हीं के हाथों तुम्हारा पतन होगा, अवश्य होगा। उन दोनों में से एक लक्ष्मण अकेले ही तुम्हें धूल में मिला सकते है"-हनुमान ने रावण को खरी-खरी सुनाते हुए कहा ।
--"रे कपि ! तू मेरे शत्रु का पक्ष ले कर मुझ से झगड़ रहा है। फिर भी तु दूत होने के कारण अवध्य है। किंतु तेरी उद्दण्डता दूत की सीमा से बाहर है, फिर भी में प्राण-दण्ड देना नहीं चाहता। किंतु तेरा काला मुंह और पंच शिखा कर के गधे पर बिठाया जायगा और नगरी के प्रत्येक मार्ग पर, लोक-समूह के साथ घुमाया जायगा।"
रावण के वचन से हनमान का क्रोध भडका। उन्होंने झटका दे कर नागपाश तोड फेंका और उछल कर, रावण के मुकुट पर पदाघात कर के गिरा दिया। इसके बाद वे कूदते-फांदते लंका को रौंदते, उसके भव्य भवनों को नष्ट करते हुए निकल गए। रावण"पकड़ो, बाँधो, मारो, वह गया, दौड़ो"-बकता ही रह गया। सभाजन यह असंभवित दृश्य देख कर स्तब्ध रह गए। उन्हें इस घटना की आशंका ही नहीं की थी।
हनुमान, किष्किन्धा लौट आए और वहाँ घटित घटना का विस्तार से वर्णन कर के सुनाया तथा सीताजी का चूड़ामणि, रामभद्रजी को दिया। रामभद्रजी को इससे बहुत संतोष हुआ। वे चूड़ामणि को बारबार हृदय से लगाने लगे। उन्होंने हनुमान को प्रसन्न हो कर छाती से लगाया और सीता का वृत्तांत बारबार पूछने लगे।
राम-लक्ष्मण की रावण पर चढ़ाई
समुद्र और सेतु से लड़ाई
हनुमान से सीता के समाचार और रावण के अपमान की बात जान कर, रामलक्ष्मण और सुग्रीव, भामण्डल, नल, नील, महेन्द्र, हनुमान, विराध, सुसेन, जाम्बवान, अंगद आदि ने रावण पर चढ़ाई कर दी। वे आकाश-मार्ग गे चले। उनके साथ अन्य राजाओं ने भी अपनी सेना सहित प्रयाण किया। उनके विचय कूच के वादिन्त्रों के नाद से आकाश गुंजित हो गया। अपने स्वामी के कार्य की सिद्धि में पूर्ण विश्वास से अभिभूत हो कर विद्याधर-गण विमान, रथ, अश्व, हाथी आदि वाहनों पर आरूढ़ हो कर आकाश"मार्ग से चलने लगे। वे सभी वेलंधर पर्वत पर बसे हुए वेलंधरपुर के निकट आये। वहां 'समुद्र' । और 'हेतु' नाम के दो बलवान् एवं दुर्धर्ष राजा थे। उन्होंने राम-सेना के साथ युद्ध
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