Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
छेड़ दिया। यह देख कर नल और नील नरेश भी उनसे भिड़ गए और समुद्र तथा सेतु को परास्त कर बांध लिया तथा रामभद्रजी के सम्मुख ला कर खड़े कर दिये । रामभद्रजी ने उन्हें क्षमा कर दिया और उनका राज्य उन्हीं के पास रहने दिया । समुद्र राजा ने अपनी अत्यन्त सुन्दर ऐसी तीन कुमारियाँ लक्ष्मणजी को दी। रातभर वहीं विश्राम करके दूसरे दिन फिर विजयकूच प्रारंभ की। समुद्र और सेतु भी इस विजय-यात्रा में सम्मिलित होगए। थोड़ी ही देर में वे सुवेलगिरि के निकट पहुँच गए। वहां सुवेलराजा से युद्ध करना पड़ा । वह भी पराजित हुआ और आज्ञाकारी बन गया। यह रात्रि वहीं बिता कर सेना आगे बढ़ी। तीसरे दिन लंका के निकट हंस-द्वीप पहुंचे तो प्रजाजन भयभीत होगए। सीताहरण के पाप से लंकावासी, भावी-अनिष्ट की कल्पना कर ही रहे थे। हनुमान के उपद्रव ने भी उन्हें चौंका दिया था और समुद्र पार कर, रावण से लड़ने के लिए आये हुए राम-लक्ष्मणादि विशाल सैन्य के समाचारों ने लंकावासियों को विशेष डरा दिया। उन्हें विनाश-काल निकट दिखाई देने लगा।
विभीषण की रावण और इन्द्रजीत से झड़प
राम-लक्ष्मण का आगमन जान कर रावण के हस्त, प्रहस्त, मारीच और सारण आदि हजारों सामन्त, युद्ध की तय्यारी करने लगे। करोड़ों सैनिक युद्ध करने के लिए सन्नद्ध होगए । युद्ध के बाजे बजने लगे । विभीषण इस युद्ध के अनिष्ट परिणाम को जानता था । रावण की अनीति में ही उसे पतन का संकेत दिखाई दिया। वह फिर रावण के पास पहुँचा और नम्रतापूर्वक कहने लगा;
"बन्धुवर ! प्रसन्न होओ और मेरी विनम्र प्रार्थना सुनो। आपने उभय-लोक घातक तथा वंश-विनाशक ऐसा परस्त्रीहरण का पाप किया है । उस पाप को अब भी धो डालो और राम-लक्ष्मण का सम्मान कर के सीता को उन्हें देदो, तो यह युद्ध टल जायगा और हमारे कुल पर लगा हुआ कलंक भी मिट जायगा।"
--"काकाजी ! आप तो जन्म से ही भीरु और कायर हैं"--इन्द्रजीत बीच में ही बोल उठा--"आपने हमारे कुल को दूषित कर दिया । क्या आप, मेरे इन पूज्य पिताश्री के बन्धु हैं ? आप इनके बल को नहीं जानते ? परम पराक्रमी इन्द्र नरेश को भी जीतने
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