Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
दी, तो कभी हस्त के पक्ष में । अन्त में नल ने क्षुरप्र बाण का प्रहार कर के हस्त का मस्तक काट कर गिरा दिया। जिस प्रकार नल ने हस्त को मारा, उसी प्रकार नील ने प्रहस्त को मार डाला। इसके बाद रावण सेना से मारीच, सिंहध्व, स्वयंभू, सारण, शुक आदि योद्धा आगे बढ़े। इनका सामना करने के लिए रामसेना से मदनांकुर, संताप, प्रथित, आक्रोश नन्दन आदि उपस्थित हुए। युद्ध की भीषणता चलती ही रही । दिनभर युद्ध चलता रहा। सूर्यास्त होने पर युद्ध स्थगित हो गया। दोनों ओर की सेना अपने-अपने पड़ाव में चली गई। घायलों और मृतकों की व्यवस्था होने लगी।
माली वज्रोदर जम्बूमाली आदि का विनाश
दूसरे दिन फिर युद्ध प्रारम्भ हुआ। रावण गजरथ पर आरूढ़ था और अपनी सेना में शौर्य जगाता हुआ युद्ध को विशेष उग्र बना दिया। राक्षसों की आज की मार ने वानरों के पाँव उखाड़ दिये । वानरों की दुर्दशा देख कर सुग्रीव नरेश कोपायमान हुए और आगे आये । किन्तु उन्हें बीच में ही रोकते हुए हनुमान आगे बढ़े। वे राक्षसों के दुर्भेद्य व्युह को भीषण प्रहार द्वारा भेद कर छिन्नभिन्न करने लगे। उन्हें आगे बढ़ते देख कर, माली नाम का दुर्जय राक्षस, मेघ के समान गर्जना करता हुआ तथा धनुष पर टंकार करता हुआ उपस्थित हुआ और बाणवर्षा करने लगा। दोनों वीरों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में माली राक्षस के सारे शस्त्रास्त्र व्यर्थ गए और वह निःशस्त्र हो गया, तब हनुमान ने उससे कहा'अरे वृद्ध राक्षस ! जा भाग यहाँ से । मैं तुझ निहत्थे को मारना नहीं चाहता।' हनुमान के वचन, वज्रोदर राक्षस से सहन नहीं हुए। वह क्रोधपूर्वक आगे बढ़ा और बोला-- "ऐ निर्लज्ज पापी ! मुंह सम्हाल कर बोल । मैं अभी तेरा गर्व एवं जीवन समाप्त किये देता हूँ।" वज्रोदर के असह्य वचनों का उत्तर हनुमान ने अस्त्र-प्रहार से दिया । दोनों वीरों में भीषण बाणवर्षा हुई । युद्ध दृश्य देखने वाले देव, कभी हनुमान के युद्धकौशल की प्रशंसा करते और कभी वज्रोदर की । वज्रोदर की प्रशंसा, हनुमान सहन नहीं कर सके। उन्होंने कुछ विचित्र अस्त्रों का एकसाथ प्रहार कर के वज्रोदर को मार डाला।
___वज्रोदर के गिरते ही रावण का पुत्र जम्बूमाली आगे बढ़ा और क्रोधपूर्ण कटुतम वचनों से गरजता तथा बाण चलाता हुआ आया। दोनों महारथियों में बहुत समय तक भीषण युद्ध चलता रहा । अन्त में हनुमान के प्रबल प्रहार से जम्बमाली का रथ, घोड़ा और सारथी नष्ट हो गये और वह स्वयं भी मूच्छित हो कर भूमि पर गिर गये । उसके
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