Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अपने अनुजबान्धव के साथ आने ही वाले हैं। तेरे बंधव्य का समय अब निकट ही है । तू जा यहाँ से, चली जा । अब फिर अपनी छाया से मुझे दूषित करने यहाँ मत आना ।" मन्दोदरी हताश हो कर चली गई । उसके जाते ही हनुमान प्रकट हुए और सीता को प्रणाम करते हुए बोले;
" देवी ! श्रीराम-लक्ष्मण स्वस्थ हैं। में उनका सन्देश ले कर आया हूँ । यह मुद्रिका भी में ही आपके विश्वास के लिए लाया हूँ । मेरे लौटते ही वे शत्रु को नष्ट करने के लिए यहाँ आएँगे ।"
तीर्थंकर चरित्र
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राम का समाचार सुन कर सीता आश्चर्यपूर्वक बोली ; -
" हे वीर ! तुम कौन हो और इस दुर्लध्य समुद्र को लांघ कर यहाँ कैसे आये ? तुमने मेरे प्राणेश्वर और वत्स लक्ष्मण को कहाँ देखे । वे अभी कहाँ हैं और किस दशा में हैं ?"
--" माता ! में महाराज पवनंजयजी और महासती अंजना का पुत्र हनुमान हूँ । आकाशगामिनी विद्या से समुद्र लांघ कर में यहां आया हूँ। मैं पहले रावण की सहायता कर चुका हूँ । रावण की अनीति से उसका पक्ष त्याग कर मैंने श्री राम-लक्ष्मण की सेवा स्वीकार की है । रामभद्रजी आपके वियोग में सदैव चिंतित, उदास एवं संतप्त रहते हैं । गाय के वियोग से बछड़ा दुःखी रहता है, वैसे लक्ष्मण भी आपके वियोग में दुःखी हैं। अभी वे किfoकन्धापुरी में हैं । वानरराज सुग्रीव, भामण्डल, विराध और महेन्द्र नरेश आदि अनेक विद्याधर, राम-लक्ष्मण की सेवा में हैं। मेरे लोटते ही वे लंकापुरी के लिए प्रयाण करेंगे । आपकी खोज करने के लिए महाराज सुग्रीवजी ने मुझे चुना और में रामभद्रजी ear सन्देश और मुद्रिका ले कर यहां आया । उन्होंने मुझे आपसे चूड़ामणि दीजिये और आहार ग्रहण करके अपने शरीर को स्वस्थ रखिये ।" हनुमान से सारा वृत्तांत सुन कर सोता प्रसन्न हुई और अपनी इक्कीस दिन की तपस्या पूर्ण कर के भोजन किया। इसके बाद अपना चूड़ामणि देते हुए सीताजी ने हनुमान से कहा;
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" वत्स ! अब तुम यहाँ से शीघ्र ही चले जाओ । यदि शत्रु को तुम्हारे यहां आने का पता लग गया, तो उपद्रव खड़ा हो जायगा । ये क्रूर राक्षस तुम्हें पकड़ कर अनिष्ट करेंगे ।"
- " माता ! आप चिन्ता नहीं करें। में विश्व विजेता पुरुषोत्तम राम-लक्ष्मण का
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