Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
मृत्यु पा कर महालोचन नामक गरुड़पति देव हुए। आर.न कम्पन से हम पर उपसर्ग जान कर पूर्व-स्नेह के कारण यहाँ आये हैं ।
कालान्तर में वह मिथ्यादृष्टि अनलप्रभ देव, अन्य देवों के साथ, कौतुक देखने की इच्छा से अनन्तवीर्य नाम के केवलज्ञानी भगवंत के पास गया। धर्मदेशना के पश्चात् किसी ने प्रश्न किया--"भगवन् ! मुनिसुव्रत भगवान् के इस धर्म-शासन में आपके बाद केवलज्ञानी कौन होगा ?" सर्वज्ञ ने कहा--" मेरे निर्वाण के बाद कुलभूषण और देशभूषण नाम के दो साधु केवली होंगे।" यह बात अनलप्रभ ने भी सुनी। कालान्तर में उसने पूर्ववैर के उदय से विभंगज्ञान से हमें इस पर्वत पर देखा और मिथ्यात्व के जोर से केवली का वचन अन्यथा करने यहाँ आया और और हमें दारुण दुःख देने लगा। लगातार चार दिन तक उपसर्ग करते रहने पर आज तुम्हारे भय से वह भाग गया है । उसके योग से हमें घातिकर्म क्षय करने में सफलता मिली।"
__महालोचन देव ने रामभद्र से कहा--"तुमने यहाँ आ कर मुनिवरों का उपसर्ग दूर किया, यह अच्छा किया । मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। कहो मैं तुम्हारा क्या भला करूँ ?"
रामभद्र ने कहा--"हमें किसी प्रकार की चाहना नहीं है ।"--मैं कभी किसी प्रकार तुम्हारा हित करूँगा"-कह कर देव चला गया।
नगर का भय दूर होने और महामुनियों को केवलज्ञान होने की बात सुन कर वंसस्थल नरेश भी पर्वत पर आये । केवलज्ञानी भगवंतों को वंदना कर के रामभद्रजी का अत्यन्त आदर-सत्कार किया। रामभद्रादि वहाँ से प्रस्थान कर आगे बढ़े।
दण्डकारण्य में + + जटायु परिचय
चलते-चलते रामभद्रादि ‘दण्डकारण्य' नामक प्रचण्ड अटवी में आये और एक पर्वत की गुफा में प्रवेश किया। उस गुफा में रहने की सुविधा होने से वे वहाँ कुछ दिन के लिए ठहर गए । एक दिन वहाँ · त्रिगुप्त' और सुगुप्त' नाम के दो चारण मुनि आये। वे दो मास के उपवासी साधु थे और पारणे के लिए वहाँ आये थे। रामभद्रादि ने उनको भक्तिपूर्वक वंदना की और प्रासुक आहार-पानी से प्रतिलाभित किया। उस दान से प्रभावित हो कर देवों ने वहाँ सुगन्धित जल और रत्नों की वर्षा की । उसी समय कंबुद्वीप के विद्याधरपति · रत्नजटी' और दो देव वहाँ आये। उन्होंने प्रसन्न हो कर राम को अश्वयुक्त रथ दिया। वहां एक वृक्ष पर गन्ध नाम के रोग से पीड़ित एक गिद्ध पक्षी बैठा था।
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