Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चन्द्रनखा का रावण को उभाड़ना
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झाबास में रहा । साहसगति राज्यभवन में ही रहा-अन्तःपुर से दूर । सुग्रीव उस धूर्त से पार पाने का उपाय सोचने लगा । उसकी दृष्टि रावण की बोर गई, किन्तु फिर रुक गई। * रावण स्वयं लम्पट है । यदि उसने धूर्त से रक्षा की भी, तो तारा के रूप पर मुग्ध हो, वह स्वयं हो विपत्तिरूप बन सकता है'-इन विचारों ने उसे रावण की ओर से मोड़ा। उसने फिर सोचा--'पाताल-लंकापति खर पराक्रमी योद्धा था, किन्तु लक्ष्मण ने उसे मार डाला । में राम-लक्ष्मण की सहायता प्राप्त कर सकू, तो मेरा कार्य सफल हो सकता है"-- इस विचार से सुग्रीव ने अपने विश्वासी दूत को विराध के पास भेजा । दूत की बात सुन कर विराक्ष ने कहा-"तुम जाओ और सुशव को ही यहाँ भेज दो।" दूत की बात सुन कर सराव, विराध के पास आया। विराध और सूर्यव, राम-लक्ष्मण के पास आये और अपनी व्यथा सुनाई । रामभद्रा जी स्वयं ही संकट में थे, किन्तु सुग्रीव की विपत्ति देख कर के सहायक बनने को तत्पर हो गए और दोनों भाई उसके साथ हो लिये। विराध राजा भी साथ ही आना चाहता था, परंतु रामभद्रजी ने उसे रोक कर राज्य-व्यवस्था सम्भालने की सूचना की । किष्किधा पहुँचने के बाद सुग्रीव ने उस नकली सुग्रीव को युद्ध के लिए ललकारा । वह फिर सामने आया और दोनों वीर भिड़ गए । समभद्रजी स्वयं भी यह निर्णय नहीं कर सके कि- दोनों में वास्तविक कौन है ।" कुछ क्षण विचार करने के बाद उन्होंने व जावर्त धनुष सम्हाला और उसका टंकार किया। उस टंकार-ध्वरि के प्रभाव से साहसगति की परावर्तनी (रूपान्तरकारी विद्या निकल कर पलायन कर गई। अब उसका वास्तविक रूप खुल गया था। राम ने उसे फटकारते हए कहा
“दुष्ट पापी ! परस्त्री-लम्पट ! बब अपने पाप का फल भोग"-इतना कह कर एक ही बाण में उसे समाप्त कर दिया । सुग्रीव का संकट समाप्त हो गया । वह पूर्व की तुरह राज्याधिपति हुआ । उसने अपनी तरह कन्याएँ राम को देने का प्रस्ताव किया । सम ने कहा--" मुझे इनकी आवश्यकता नहीं । तुम सीता की खोज करो।"
सुग्रीव आज्ञाकारी सेवक बन गया । उसने खोज प्रारंभ की । राम-लक्ष्मण नगर के बाहर, उद्यान में रहने लगे।
चन्द्रनखा का रावण को उभाड़ना खर-दूषण आदि के युद्ध में मारे जाने के समाचार रावण के पास पहुँचे । उसको वहिन चन्द्रनखा अपने पुत्र सुन्द के साथ रोती, छाती कूटती तथा कुहराम मचाती हुई आई,
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