Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मन्दोदरी रावण की दुती बनी
उद्विग्नता देख कर पूछा-
" स्वामिन् ! आप उद्विग्न क्यों हैं ? एक साधारण मनुष्य की भाँति आपको अशांत नहीं बनना चाहिये । आपको तड़पते देख कर मुझे भी दुःख हो रहा है । कहिये, क्या कारण है आपकी चिन्ता का ?"
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"प्रिये ! मैं क्या कहूँ-अपनी अशांति की बात ? सीता के बिना मुझे शांति नहीं मिल सकती । यदि तु मुझे प्रसन्न देखना चाहती है, तो स्वयं जा और सीता को मना कर मेरे अनुकूल बना । यही मुझे प्रसन्न करने एवं जीवित रखने का उपाय है, अन्यथा मेरी प्रसन्नता और जीवन की आशा छोड़ दे । में बलात्कार कर के भी अपनी इच्छा पूर्ण कर सकता था, किन्तु किसी स्त्री के साथ बलात्कार नहीं करने को मैंने शपथ ले रखी है ! में अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ सकता । अब तू ही मेरा दुःख मिटा सकती है।"
रावण की बात सुन कर मन्दोदरी विचार में पड़ गई । वह उठी और वाहनारूढ़ हो कर देवरमण उद्यान में आई। उसने सीता के सामने उपस्थित हो कर विनयपूर्वक कहा; - " देवी ! में महाराजाधिराज दशाननजी की पटरानी मन्दोदरी हूँ, किन्तु तेरे सामने तो मैं सेविका के रूप में उपस्थित हुई हूँ । यदि तू मेरी सेवा स्वीकार कर ले, तो मैं तुझे मेरे स्थान पर प्रतिष्ठित कर के जीवनभर तेरी सेवा करने को तत्पर हूँ । सुन्दरी ! तेरा भाग्य उदय हुआ है। तू त्रिखण्डाधिपति की हृदयेश्वरी हो जायगी और समस्त साम्राज्य तेरा आज्ञांकित रहेगा। अबतक तेरा भाग्योदय नहीं हुआ था, इसलिए तू उस दरिद्री राम के साथ भिखारियों की तरह वन में भटक रही थी। तेरा यह जीवन व्यर्थ ही नष्ट हो रहा था। अब तू उस विश्वपूज्य पुरुषोत्तम के हृदय में बस गई है, जिसके चरणों में सारा संसार झुक रहा है । उठ, मेरे साथ राज्यभवन में चल । में आज ही तेरा अग्रमहिषी का अभिषेक, महाराजाधिराज द्वारा कराऊंगी और स्वयं तेरी सेवा में तत्पर रहूँगी।” " चल हट कुटनी ! तू उस लम्पट चोर को महापुरुष बताती है--जो डाका डाल कर मुझे ले आया । वह गीदड़ मेरे केसरी सिंह जैसे जीवनाधार की समानता क्या करेगा ? मैं तो समझती थी कि रावण ही दुराचारी है, परंतु अब जाना कि तू भी दुराचारिणी है, जो कुटनी का काम कर, सती महिलाओं को दुराचार में लगाने की चेष्टा करती है । जा, हट यहाँ से । तेरी छाया के स्पर्श से भी पाप लगता है,” -सीता ने रोषपूर्वक कहा-रावण छिप कर यह वार्तालाप सुन रहा था । वह प्रकट हो कर कहने लगा:दोष देती है ? वह तो तेरे भले के लिए, अपना
'सुन्दरी ! मन्दोदरी को क्यों
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