Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र
उपस्थित रहूँगा । उस दुर्भागी और भील जैसे वनवासी राम के साथ तो तू दुःखी थी। तेरा जीवन कष्टमय था । उस दरिद्र के साथ रह कर यह देवांगना जैसा उत्कृष्ट रूपयौवन नष्ट करने में कौन-सा लाभ था ? में तुझे देवोपम सुख प्रदान करूँगा । तू इन्द्राणी के समान गौरव - शालिनी हो जावेगी । राम जैसे हजारों, तेरे सेवकों के भी सेवक होंगे । अब तू शोक एवं विषाद को त्याग कर मुझ में अनुरक्त हो जा और मेरी बन जा । में तेरे समस्त मनोरथ पूर्ण करूँगा ।"
सीता तो अपने शोकसागर में निमग्न ही थी । उसने रावण की बात पर ध्यान ही नहीं दिया । रावण ने उसे प्रसन्न करने के लिए उसके चरणों में अपना मस्तक झुका दिया । सीता उसके मस्तक के स्पर्श से बचने के लिए पीछे हटी और आक्रोश पूर्वक बोली;
"नीच, निर्दय, निर्लज्ज ! तेरा हृदय पाप से ही भरा है क्या ? याद रख कि इस महापाप का फल तुझे अवश्य मिलेगा | अब तेरे अधःपतन और मृत्यु का समय निकट आ रहा है । तेरा दुष्ट मनोरथ कभी सफल नहीं हो सकेगा । में महापुरुष राम की ही हूँ और उन्हीं की रहूँगी। मेरे सामने तु तो क्या, पर इन्द्र का वैभव भी धूल के समान है । में ऐसे प्रलोभनों को ठुकराती हूँ। तेरा भला इसी में है कि तू मुझे लौटा कर मेरे स्थान पर रख आ । वे महापुरुष तुझे क्षमा कर देंगे । अन्यथा तेरा विनाश निकट है ।"
रावण विवश रहा। वह सीता को ले कर लंका में आया । मन्त्रियों और सामन्तों ने उसका स्वागत किया । लंका नगरी के बाहर पूर्वदिशा में रहे हुए देवरमण उद्यान में, स्वत अशोक वृक्ष के नीचे सीता को बिठाया और उसकी रक्षा के लिए त्रिजटा आदि को लगा कर रावण अपने भवन में आया |
विराध का सहयोग +++ खर का पतन
रामभद्रजी, लक्ष्मण के सिंहनाद के भ्रम में युद्धस्थल पर पहुँचे, तो लक्ष्मण को आश्चर्य हुआ । उन्होंने पूछा--"आप भाभी को अकेली छोड़ कर यहाँ क्यों आए ? " राम ने प्रति प्रश्न किया--"तुमने सिंहनाद क्यों किया ?" लक्ष्मण ने कहा- "मैंने सिंहनाद नहीं किया । किसी" धूर्त ने आपको धोखा दिया है । अवश्य ही किसी 'दुष्ट ने पूज्या का अपहरण कर लिया होगा ? निःसन्देह यह धूर्तता, देवी को उड़ा ले जाने के लिए ही की गई है। आप जाइए, अभी जा कर देवी की रक्षा कीजिए । मे अभी इन शत्रुओं
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