Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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विराध का सहयोग +++ खर का यतन
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को समाप्त कर, आपके पीछे ही आता हूँ।" लक्ष्मण की बात सुन कर राम तत्काल लौटे। जब वह स्थान सीता-शून्य देखा, तो उनके हृदय को प्रबल आघात लगा । वे मूच्छित हो कर पृथ्वी पर गिर पड़े । मूर्छा दूर होने पर उठे। इधर-उधर देखा, तो घायल हो कर मरणोन्मुख हुआ जटायु दिवाई दिया। वे समझ गए कि प्रिय सीता के हरण में बाधक बनने के कारण उस डाकू ने इस प्रियपक्षी को घायल कर दिया। वे उसके निकट गये और अन्तिम समय में धर्म-सहाय्य देने के लिए नमस्कार महामन्त्र सुनाया। समाधीभाव से मृत्यु या कर जटायु माहेन्द्रकल्प (चौथे देवलोक) में देव हुआ। जटायु की मृत्यु हो जाने पर रामभद्रजी, सीता की खोज में इधर-उधर भटकने लगे।
__ खर की सेना के साथ अकेले लक्ष्मणजी युद्ध कर रहे थे। इस बीच खर के छोटे भाई त्रिशिरा ने अपने ज्येष्ठबन्ध खर से कहा--" इस धृष्ट से मुझे समझने दें और आप एक ओर बैठ कर विश्राम करें।" लक्ष्मण ने अभिमानपूर्वक आये और गर्वोक्ति सुनाने वाले त्रिशिरा को तत्काल पुनर्भव करने को विदा कर दिया। उसी समय पाताल-लंका का अधिपति चन्द्रोदर राजा का पुत्र 'विराध,' अपनी सुसज्जित सेना को ले कर युद्ध के लिए आ डटा । उसने लक्ष्मणजी के निकट पहुँच कर प्रणाम किया और निवेदन करने लगा;
"महाभाग ! मैं आपको सेवा में अपनी सेना सहित उपस्थित हूँ। ये आपके शत्रु मेरे भी शत्रु हैं । ये रावण के सेवक हैं । रावण ने मेरे पराक्रमी पिता को राज्यच्युत कर के निकाल दिया था और हमारी पाताल लंका के स्वामी बन गए थे। हे स्वामी ! आप तो सूर्य के समान स्वयं समर्थ हैं। आपको मेरी सहायता की आवश्यकता नहीं, किन्तु में आपके शत्रुओं का विनाश करने के कार्य में किञ्चित् सेवा अर्पण करना चाहता हूँ। इसलिए मझे अपनी ओर से यद्ध करने की आज्ञा प्रदान करें।"
“सखे ! मैं अभी इनको इस जीवन से मुक्त कर परलोक-यात्रा करवाता हूँ। तुम देखते रहो । आज से तुम्हारे स्वामी मेरे ज्येष्ठबन्धु रामभद्रजी हैं और तुम इसी समय से पाताल-लंका के राजा हो । मैं तुम्हें यही यह राज्य प्रदान करता हूँ।"
विराध को लक्ष्मण के पास-उनके पक्ष में देख कर, खर अत्यन्त क्रुद्ध हुआ और लक्ष्मण से बोला;--
“अरे ओ विश्वासघाती ! मेरे पुत्र शम्बुक का घातक ! तू अब इस तुच्छ पामर विराध की सहायता से बच जायगा क्या ? मैं तुझे अभी तेरी करणी का फल चखाता हूँ।"
___ 'तुम्हारा अनुज-बन्धु, तुम्हारे पुत्र शंबूक से मिलना चाहता था, मैंने उसे उसके पास भेज दिया है । यदि तुम भी पुत्र से मिलना चाहते हो, तो तुम्हें भी वहाँ भेज सकता
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