Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थंकर चरित्र
लक्ष्मणजी ने किसी नागरिक से उद्घोषणा का कारण पूछा। उसने कहा--" यहाँ के नरेश शत्रुदमनजी एक पराक्रमी एवं बलवान् नरेश हैं । उनकी कन्यकादेवी रानी की कुक्षि से जन्मी राजकुमारी जितपद्मा अनुपम सुन्दरी और लक्ष्मी के अवतार जैसी है । उसका वर भी वीर ही होना चाहिए, इसलिए राजा ने यह निश्चय किया है कि जो उसके शक्तिप्रहार को सह सके, वह वीर पुरुष ही मेरी पुत्री का पति होगा । यही इस घोषणा का अर्थ है । अब तक उसके योग्य वर नहीं मिला। प्रति दिन उद्घोषणा होती रहती है।"
लक्ष्मणजी तत्काल राजसभा में पहुँचे । नरेश के परिचय पूछने पर अपने को राजाधिराज भरतजी का दूत बतलाया और कहा ।
___में कार्य-विशेष से इधर से जा रहा था कि आपकी उद्घोषणा और उसमें रही हुई चिन्ता की बात सुनने में आई। मैं आपको चिता-मुक्त करने के लिए आया हूँ। आपकी प्रिय पुत्री को मैं ग्रहण कर सकूँगा।"
एक दूत की धृष्टता से राजा रुष्ट हुआ। फिर भी पूछा;-- --"आप मेरी शक्ति के प्रहार को सहन कर सकेंगे।"
--"एक ही क्या, पाँच शक्ति का प्रहार करिये । मैं सहर्ष तत्पर हूँ"-लक्ष्मणजी ने साहसपूर्वक कहा।
ये समाचार अन्तःपुर में भी पहुँचे। राजमहिषी झरोखे में आ कर लक्ष्मणजी को देखने लगी। राजकुमारी भी एक ओर छुप कर देखने लगी । लक्ष्मणजी को देखते ही राजकुमारी मोहित हो गई। वह सोचने लगी-“पिताजी शक्ति-प्रहार नहीं करे, तो अच्छा हो ।" वह अनिष्ट को आशंका से चिन्तित हुई । उससे रहा नहीं गया । वह राजसभा में चली आई। उसने पिता को शक्ति-प्रहार करने से रोकते हुए कहा ;---
"पिताजी ! रुकिये । अब परीक्षा करने की आवश्यकता नहीं रही। मैं इन्हें ही वरण करूँगी । अब आप इस घातक परीक्षा को बन्द करिये।" ।
वैसे राजा भी लक्ष्मण की आकृति देख कर प्रभावित हुआ था, किन्तु दूत जैसे हीन व्यक्ति को जामाता कैसे बना ले ? इसलिए उसने शक्ति-प्रहार आवश्यक माना और उठ खड़ा हुआ--शक्ति ले कर प्रहार करने । चलादि शक्ति लक्ष्मण पर । लक्ष्मणजी ने दो प्रहार हाथ पर झेले, दो छाती पर और एक दाँत पर । पाँचों प्रहार सह कर भी लक्ष्मणजी अडिग रहे । उनके मुख पर हास्य छाया रहा । उपस्थित जन-समूह अनिष्ट की आशंका से चिन्तित था। किन्तु शक्ति की विफलता और लक्ष्मण की अजेयता देख कर जयजयकार किया । जितपद्मा ने प्रफुल्ल-वदन हो लक्ष्मण के गले में वरमाला डाल दी। नरेश भी
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