Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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बालक का वज्रमय शरीर
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वसंतमाला ने विवाह से लगा कर वर्तमान दशा तक सारी कथा कह सुनाई। अंजना की विपत्ति की बात सुन कर आगत व्यक्ति की आँखों में आँसू छलक आये । उसने कहा---
__ "मैं हनुपुर का राजा प्रतिसूर्य हूँ। मनोवेगा मेरी बहिन है और तू (अंजना) मेरी भानजी है । मेरा सद्भाग्य है कि इस भयानक बन में मैं तुझे जीवित देख सका। अब तरी विपत्ति के दिन गये । चल तू मेरे साथ ।"
मामा को सामने देख कर अंजना का दुःखपूर्ण हृदय उभर आया । वह जोर-जोर से रोनी लगी। प्रतिसूर्य ने अंजना को सान्त्वना दी और वसंतमाला सहित विमान में बिठा कर उड़ा।
बालक का वज्रमय शरीर
बालक अंजना की गोदी में लेटा हुआ था। उसकी दृष्टि, विमान में लटकती हुई रत्नमय झूमर पर पड़ी । रत्नों के प्रकाश से बालक आकर्षित हुआ। वह माता की गोद में से उछला और नीचे एक पर्वत पर आ गिरा। बालक के गिरते ही अंजना को भारी आघात लगा । उसका हृदय दहल गया । वह चित्कार कर रो उठी । राजा विमान स्तंभित कर नीचे उतरा और बालक को हँसता-खेलता पाया। किन्तु जिस स्थान पर बालक गिरा, वहां की एक भारी पाषाण-शिला टूट कर चूर-चूर हो गई। बालक को उठा कर राजा अंजना के पास लाया और उसकी गोदी में देते हुए बोला
"पगली ! तू रो रही है और यह एक भारी चट्टान के टुकड़े-टुकड़े कर के भी आनन्द से किलकारी कर रहा है। वास्तव में यह बालक महाबली एवं प्रबल पराक्रमी होगा।"
___अंजना ने पुत्र को छाती से लगा लिया । वे सब हनुपुर आये। अंजना का हार्दिक सत्कार हुआ और बालक का धूमधाम से जन्मोत्सव मनाया गया । जन्मोत्सव हनुपुर में मनाने की स्मृति बनाई रखने के लिए बालक का नाम "हनुमान" दिया गया। शैल (पर्वत) शिला का चूर्ण कर देने के निमित्त से दूसरा नाम--"श्रीशैल" दिया गया । ज्योतिषियों ने बालक के ग्रह देख कर बताया कि यह बालक प्रबल पराक्रमी, महान् राज्याधिपति होगा और इसी भव में मुक्ति प्राप्त करने वाला होगा। इसका जन्म चैत्रकृष्णा अष्टमी रविवार और श्रवण-नक्षत्र का है । सूर्य ऊँच का हो कर मेष राशि में आया है।
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