Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
वे सभी विद्याओं एवं कलाओं में प्रवीण हुए। वे महापराक्रमी और अजेय योद्धा हो कर अपने बल एवं पौरुष से बड़े-बड़े वीरों को भी विस्मित करने लगे । दशरथ नरेश अपने युगल पुत्रों के अपार भुजबल एवं शस्त्रास्त्र प्रयोग की परम निपुणता से अपने को अजेय मानने लगे ।
अयोध्या आगमन और भरत शत्रुघ्न का जन्म
जब दशरथजी ने देखा कि उनके पुत्र राम और लक्ष्मण जोरावर हैं । शत्रु का दमन करने योग्य हैं । उनकी माता को आये स्वप्नों के फलस्वरूप वे दोनों भाई अपने समय के महापुरुष और परम विजेता होंगे, ऐसा उनका विश्वास था । अतएव उन्होंने अब अपना परम्परागत राज्य संम्भालना उचित समझा। वे अपने परिवार को ले कर अयोध्या आये |
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कुछ काल के बाद रानी कैकेयी के पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम 'भरत' रखा और सुप्रभा के पुत्र हुआ उसका नाम 'शत्रुघ्न' रखा । भरत और शत्रुघ्न भी पराक्रमी वीर और समस्त कलाओं में पारंगत हुए ।
सीता का वृत्तान्त
इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में 'दारु' नामक ग्राम था। वहां वसुभूति नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसके अनुकोशा नाम की पत्नी से एक पुत्र हुआ । पुत्र का नाम 'अतिभूति' था और 'सरसा' नाम की सुन्दरी उसकी पत्नी थी । सरसा पर एक 'क्यान नाम का ब्राह्मण मोहित हो गया और उसका अपहरण कर कर अन्यत्र ले गया । पत्नी का अपहरण जान कर अतिभूति उसकी खोज करने के लिए निकल गया । वह विक्षिप्त के समान भटकने लगा । पुत्र के जाने पर वसुभूति और उसकी पत्नी भी पुत्र की खोज में चल निकले | भटकते-भटकते सद्भाग्य से उन्हें एक मुनिराज के दर्शन हुए। संत समागम से उनका मोह कम हुआ और वह सुव्रती बन गया। उसकी पत्नी भी कमलश्रीजी साध्वी के पास प्रव्रजित हो गई । आयु पूर्ण होने पर वे मृत्यु पा कर सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुए । वसुभूति देवलोक से च्यव कर वैताढ्य पर्वत पर रथनूपुर नगर के राजा का पुत्र हुआ और
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