Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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रानी के सतीत्व का चमत्कार
नघुष नरेश के 'सिंहिका' नाम की रानी थी। कालान्तर में नघुष नरेश ने, उत्तरापथ के राजाओं पर विजय पाने के लिए प्रयाण किया। उनके जाने के बाद दक्षिणापथ के राजाओं ने मिल कर अयोध्या पर हमला कर दिया और अयोध्या को सभी ओर से घेर लिया। रानी सिंहिका ने रणचण्डी बन कर शत्रुओं से युद्ध किया और उन्हें अपने राज्य से खदेड़ कर राज्य को बचा लिया।
नघष नरेश ने उत्तरापथ के राजाओं पर विजय प्राप्त की और अयोध्या लौटने पर जब उन्होंने दक्षिणापथ के राजाओं की चढ़ाई और रानी की विजय के समाचार सुने, तो उनके मन में रानी के चरित्र पर सन्देह उत्पन्न हो गया। उन्होंने सोचा--"जो कार्य शूरवीर योद्धा के लिए भी दुष्कर होता है, वह एक अबला स्त्री कैसे कर सकती है ? अवश्य ही रानी दुराचारिणी है।" इस प्रकार सन्देह युक्त हो कर, रानी का त्याग कर दिया । कालान्तर में नरेश को दाहज्वर हो गया और सैकड़ों प्रकार के उपचार करने पर भी रोग शांत नहीं हुआ। दिनोदिन रोग बढ़ता ही गया । सर्वत्र निराशा व्याप्त हो गई। उस समय रानी, राजा के पास आई और हाथ में जल-पात्र ले कर बोली--"स्वामिन् ! यदि मेरा चरित्र एवं मन निर्मल एवं निष्कलंक रहा हो, तो इस जल के सिंचन से आपका रोग शमन हो जायगा।" इस प्रकार कह कर उसने जल से पति के देह पर अभिषेक किया । जल के शरीर पर से बहने के साथ ही राजा का रोग भी शांत हो गया । जैसे जल के साथ ही धुल कर बह गया हो । देवों ने पुष्पवृष्टि की । राजा को रानी के सतीत्व का विश्वास हो गया। उसने रानी को सम्मानपूर्वक अपनाया। कालान्तर में नधुष नरेश के सिंहिका रानी से एक पुत्र का जन्म हुआ। पुत्र का नाम 'सोदास' रखा । वय प्राप्त होने पर राजा ने सोदासकुमार को राज्यभार दे कर प्रवज्या स्वीकार कर ली।
मनुष्य-भक्षी सोदास
सोदास राजा मांसभक्षी हो गया । अठाई-महोत्सव के महापर्व पर मन्त्रियों ने, पूर्व परम्परानुसार अमारी घोषणा की । राजा को भी आठ दिन तक निरामिषभोजी रहने का निवेदन किया । उस मांसलोलुप राजा ने मन्त्रियों के सामने तो स्वीकार किया, किन्तु उससे रहा नहीं गया। उसने रसोइये से गुप्तरूप से मांस लाने का कहा । जब रसोइये को कहीं मांस नहीं मिला, तो वह तत्काल के मरे हुए बालक का शव (जो तत्काल ही
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