Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्यवती हनुमान को ब्याह दी । राजधानी में आ कर रावण ने अपनी बहिन सूर्पणखा की पुत्री अनंगकुसुमा का हनुमान के साथ विवाह कर दिया । सुग्रीव आदि ने भी अपनी पुत्रियाँ हनुमान को दी । हनुमान विजयोत्सव मनाता और मार्ग के राजाओं से सत्कारित होता हुआ अपने स्थान पर पहुँचा । हनुपुर में विजयी हनुमान का महोत्सवपूर्वक नगर - प्रवेश हुआ। माता-पिता और मामा आदि के प्रसन्नता की सीमा नहीं रही ।
की लग्न के बाद प्रव्रज्या
तीर्थंकर चरित्र
वज्रबाहु
मथुरा नगरी में हरिवंशोत्पन्न ' वासवकेतु' नाम का एक राजा था । 'विपुला' नामकी उसकी रानी थी। उनके 'जनक' नाम का पुत्र था । योग्य अवसर पर जनक राज्याधिपति हुआ ।
अयोध्या नगरी में, श्री ऋषभदेव भगवान् के राज्य के बाद, उस इक्ष्वाकु वंश के अन्तर्गत रहे हुए सूर्यवंश में बहुत-से राजा हुए। उनमें से कई राज्य का त्याग कर के, तप-संयम की आराधना कर मोक्ष प्राप्त हुए और कई स्वर्ग में देव हुए। उसी वंश में वर्तमान अवसर्पिणी काल के बीसवें तीर्थंकर भगवान् मुनिसुव्रत स्वामीजी के तीर्थ में 'विजय' नाम का एक राजा हुआ । उसकी 'हेमचूला' नाम की रानी थी । उसके 'वज्रबाहु' और 'पुरंदर' नाम के दो पुत्र हुए। उसी समय नागपुर में 'इभवाहन' नाम के राजा की चुड़ामणि रानी से 'मनोरमा' नाम की पुत्री हुई। जब वह यौवनावस्था को प्राप्त हुई, तब वज्रबाहु के साथ उसके लग्न हुए । लग्न कर के स्वदेश लौटते हुए वज्रबाहु और अपनी प्रिय बहिन मनोरमा को पहुँचाने के लिए, मनोरमा का भाई 'उदयसुन्दर' भी साथ आया था । साला - बहनोई मित्र के समान साथ-साथ घोड़े चलाते हुए और हंसीविनोद करते हुए चल रहे थे । वसंतगिरि पर्वत के निकट पहुँचने पर वज्रबाहु की दृष्टि 'गुणसागर' नाम के सन्त पर पड़ी। वे मुनि, सूर्य के सामने आतापना ले रहे थे । तपस्वी सन्त पर दृष्टि गड़ते ही वज्रबाहु बहुत प्रसन्न हुआ । उसने उत्साहपूर्वक उदयसुन्दर से कहा;
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" मित्र ! उधर देखो वे महान् तपस्वी सन्त उस पर्वत पर ध्यान धर कर खड़े हैं और उस असह्य ताप को सहन कर रहे हैं । हमारे सद्भाग्य हैं कि हमें ऐसे महातपस्वी के दर्शन हुए ।"
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