Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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संमयार्थवोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ९ धर्मस्वरूपनिरूपणम् उक्तश्च- 'छलिया अवयवंता निरावरक्खा गया अविग्घेणं । .
तम्हा पवयणसारे निरानयक्षेण होय' ॥१॥ "भोगे अश्यक्ता पडंति संसारसागरे घोरे।
भोगे हि निरवयक्खा तरंति संसारकंतारं ॥२॥ छाया-छलिता अपेक्षमाणा निरपेक्षमाणा गता अविध्नेन ।
तस्मात् प्रवचनसारे निरपेक्षेण भवितव्यम् ॥१॥ भोगानपेक्षमाणाः पतन्ति संसारसागरे घोरे।
भोगेहि निरपेक्षा स्तरन्ति संसारकान्तारम् ॥२॥इति॥७॥ मूलम्-पुढवी ऊ अंगणी बाऊ तणरुक्खसबीयगा।
अंडया पोर्यंजराऊ ससंलय उब्भिया ॥८॥ छाया-पृथिव्यापोऽग्निर्वायु स्तृणवृक्षाः सबीजकाः।
___ अण्डजाः पोतजरायुजाः रसंस्वेदोद्भिज्जाः ॥८॥ में तत्पर रहे। कहा भी है-'छलिया अवयक्खंत्ता' 'भोगे अवयंक्खंत्ता' इत्यादि। ___जा परपदार्थ की अपेक्षा रखते हैं, वे छले जाते हैं। इसके विपरीत, जो सर्वधा निरपेक्ष होते हैं, वे सब विघ्नो से रहित हो जाते हैं। अत एव संयम पालन में साधु को निरपेक्ष होना चाहिए ॥१।।
जो भोगों की अपेक्षा रखते हैं, वे घोर संसार सागर में डूयते हैं और भोगों के प्रति निरपेक्ष रहनेवाले संसार रूपी अटवी को पार कर जाते हैं ॥२॥॥७॥
'पुढवि ऊ' इत्यादि।
शब्दार्थ--'पुढची उ अगणी वाउ तणरुक्ख सबीयगा-पृथ्वी आपो नसे. ४ ५९ छे 3-'लिया अवयक्खता' भोगे अवयक्खंता' या
જેઓ પરપદાર્થની અપેક્ષા રાખે છે. તેઓ છેતરાય છે અને જેઓ સર્વથા અપેક્ષા રહિત હોય છે, તેઓ બધાજ વિધ્રોથી રહિત થઈ જાય છે, તેથી જ સંયમના પાલનમાં સાધુએ નિરપેક્ષ થવું જોઈએ ?
જેઓ ભેગોની અપેક્ષા રાખે છે, તેઓ સંસાર સાગરમાં ડૂબે છે. તેમજ ભેગે પ્રત્યે નિરપેક્ષ રહેનારા સંસાર રૂપી અટવાથી પાર ઉતરી જાપ છે. જરા શા 'पुढवी उ' त्यादि शहाथ-'पुढवी उ आणी वाऊ तण रुक्ख सवीयगा-पृथ्वी आपोनिर्वायुस्तृण.