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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
होने” अर्थ यथार्थ न समझें हैं तारौं संस्कृतका भावार्थ समझनेंकू देशभाषा करिये हैं । अर जे विशेष पंडित हैं ते मूलग्रंथ तथा संस्कृतटीकातें समझेंहींगे। जैनमतमैं प्रमाणनयरूप स्याद्वाद न्यायके ग्रंथ बहुत हैं तिनिके अर्थ समझनेंकू यह प्रकरण बड़ा उपकारी है तातैं याका भावार्थ देशभाषामयभी लिखिये हैं। अर जे जिनमतकी आज्ञा मानैं हैं तिनिकै अर्थका विपर्ययभी न होयगा जेता यथार्थ समझेंगे तेता तौ यथार्थ रहैहीगा अर कहीं अन्यथा होयगा तौ विशेष बुद्धिवान पंडितनिका संयोग भये यथार्थ होयगा, जैनमतके श्रद्धानवाले पुरुष हठग्राही नाही होहै तातै देशभाषा करनेमें दोष न लागैगा ऐसें जाननां ।
तहां प्रथमही याका संबंध ऐसा-जो पहले श्री अकलंकदेव आचार्य भये, ते कैसे भये, अपनी निर्दोष ज्ञान अरु संयमरूप संपदा ताकरि प्रत्येकबुद्ध श्रुतकेवली सूत्रकार आदि बड़े ऋषीश्वर तिनिकी महिमांकू आप लेते भये, बहुरि कल्याणरूप भये । बहुरि समस्त तार्किकनिका समूह तिनिविर्षे जे बड़े तार्किक तेई भये चूड़ामणि तिनिकी किरण सारिखी नमनक्रिया ताकरि मिली है चरणनिके नखनिकी किरण जिनिकी। भावार्थ-बड़े बड़े तार्किक जे तर्कशास्त्रके वेत्ता ते जिनिके चरण सेबें हैं । बहुरि कविता करना, टीका करना, वाद जीतना, वक्तापणा करना, यहु च्यारि प्रकार पंडितपणा तिसके जाननेके इच्छुक तृषातुर ग्रहण करनेके इच्छुक जे विनयकरि नम्रीभूत शिष्यजन तिनिसहित किया आप अनुभव जिनू. ऐसे भये, तिनिनँ तर्क ग्रंथनिके सात प्रकरण रचे । बृहत्रय, लघुत्रय, चूर्णिका । ते अतिकठिन जिनिमैं मन्दबुद्धि प्रवेश न करि सकै, तातै तिनिमैं मन्दबुद्धीहूनिका प्रवेश होनेके अर्थि तिनिहीका अर्थ लेकरि धारा नगरीकैवि श्रीमाणिक्यनंदिआचार्य तिनि. यह परीक्षामुख नाम प्रकरण रच्या । तिसका विवरण करनेके