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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
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नोदेष्यति मुहूर्तान्ते शकटं रेवत्युदयात् ॥ ७० ॥
याका अर्थ---इस मुहूर्त्तके अन्तमैं रोहिणी नाही उगैगा जारौं खेतीका उदय है। इहां रोहिणीके उदयत विरुद्ध जो अश्विनीका उदय ताकै पूर्वचर रेवतीका उदय हेतु है सो रोहिणीके उदयका प्रतिषेधकू साधै है, सो विरुद्धपूर्वचर हेतु भया ॥७०॥ .
आज विरुद्ध उत्तरचर लिंगकू कहैं हैं;
नोदगाद्भरणिर्मुहूर्तात्पूर्व पुष्योदयात् ॥ ७१ ॥ याका अर्थ-भरणी नाही उगी है मुहूर्ततें पहली, जातै पुष्यका उदय है । इहां भरणीके उदयतें विरुद्ध पुनर्वसुका उदय है ताकै उत्तचर पुष्यका उदय हेतु है सो भरणीका उदयका प्रतिषेधकू साधै है, सो विरुद्ध उत्तरचर हेतु भया ॥७१॥
आ विरुद्ध सहचर हेतुकू कहैं हैं;नास्त्यत्र भित्ती परभागाभावोऽर्वाग्भागदर्शनात् ॥७२॥ ___याका अर्थ-या भीतिविर्षे परले भागका अभाव नांही है जाते वैला एक भाग देखिये है । इहां परले भागका अभावकै विरुद्ध जो तिस परले भागका सद्भाव ताकै सहचर जो वैलाभाग ताका दर्शन सो विरुद्ध सहचर हेतु है । ऐसैं विरुद्धोपलब्धि हेतुके छह भेद कहे ॥७२॥ ___ आगैं साध्यतै अविरुद्ध जो अनुपलब्धि कहिये अप्राप्ति ताके भेद कहैं हैं;
अविरुद्धानुपलब्धिः प्रतिषेधे सप्तधा स्वभावव्यापककार्यकारणपूर्वोत्तरसहचरानुपलंभभेदात् ।। ७३॥
याका अर्थ—साध्यतै अविरुद्धकी अनुपलब्धि सो प्रतिषेधविर्षे सात प्रकार है;-स्वभाव, ब्यापक, कार्य, कारण, पूर्वचर, उत्तरचर,