Book Title: Pramey Ratnamala Vachanika
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 228
________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला । आगे कहैं हैं कि इस हेतु असिद्धपणां कैसैं भया ? ; स्वरूपेणैवासिद्धत्वात् ॥ २४ ॥ याका अर्थ —यह स्वरूपकरि ही असिद्ध है चाक्षुषपणां शब्दका २०१ स्वरूप नांही ॥ २४॥ आगैं प्रसिद्धका दूसरा भेदकूं कहैं हैं; - अविद्यमाननिश्चयो मुग्धबुद्धिं प्रत्यग्निरत्र धूमात् ॥ २५ ॥ याका अर्थ — प्रविद्यमान है निश्चय जाका सो असत् निश्चय हैत्वाभास है जैसैं मुग्धबुद्धि जो भोलाजीव तिस प्रति कहैं इहां अग्नि है जातें धूम है ॥ २५ ॥ आगैं यार्कै असिद्धता कैसैं ? ऐसें पूछे कहैं हैं; तस्य वाष्पादिभावेन भृतसंघाते संदेहात् ॥ २६ ॥ -- याका अर्थ - तिस धूम नामा हेतुकैं वाफ आदिपणांकरि पृथिवी आदि भूतसंघातविषै संदेह असत् निश्चय है । मुग्धर्के विद्यमान धूमविषै भी विना समस्यां संदेह उपजै जो यह वाफ है कि धूम है ? ॥२६॥ आ अमुग्धबुद्धि प्रति और असिद्धका भेद कहैं हैं ;सांख्यं प्रति परिणामी शब्दः कृतकत्वात् ॥ २७ ॥ याका अर्थ—सांख्य मती प्रति कहै— जो शब्द परिणामी जातैं कृत है ॥ २७ ॥ याका असिद्धपणांविषै कारण कहैं हैं; तेनाज्ञातत्वात् ॥ २८ ॥ याका अर्थ - तिस सांख्यकरि नांही, जानबापणांतें जातें सांख्यके मत मैं आविर्भाव तिरोभाव ही प्रसिद्ध है उत्पत्ति आदि प्रसिद्ध नांही

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