Book Title: Pramey Ratnamala Vachanika
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 235
________________ २०८ ___ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित अग्निमानयं प्रदेशो धूमवत्त्वाधदित्थं तदित्थं यथा महानसः ॥४७॥ याका अर्थ—यह प्रदेश अग्निसहित है जाते याकै धूम सहितपणां है, जो ऐसे होय (धूमसहित होय ) सो अग्निसहित होय जैसैं महानस कहिये रसोई घर । इहां तीन ही अवयव कहे तातै बालप्रयोगाभास है ॥ ४७ ॥ आगै च्यार अवयवका प्रयोग होतें प्रयोगाभास कहें हैं; धूमवाँश्वायम् ॥ ४८ ॥ याका अर्थ-धूमवान् यह है । इहां तीन अवयव तो पहले सूत्रके लेणे अर एक यह कहै ऐसैं च्यार अवयव कहै सो भी बालप्रयोगाभास है ॥ ४८ ॥ ___ आगें अवयवनिक् विपर्ययकरि क्रमहीन कहै तौऊ प्रयोगाभास कहिये, ऐसैं कहैं है; तस्मादग्निमान् धूमवाँश्चायम् ॥ ४९ ॥ __याका अर्थ-तातें अग्निमान् है बहुरि यह धूमवान् है । इहां निगमनकू पहलैं कह्या उपनयकू पी? कह्या तातै क्रमभंग भया, तातें प्रयोगभास है ॥४९॥ आगैं यह प्रयोगाभास कैसैं ? ताका हेतु कहैं हैं, स्पष्टतया प्रकृतप्रतिपत्तेरयोगात् ॥५०॥ याका अर्थ-जाते क्रमहीन अनुमानका अयोग करै तहां स्पष्टपणांकरि प्रकृत अर्थकी प्रतिपत्तिका अयोग है । शिष्यकै स्पष्ट ज्ञान होय नाही ताप्रयोगाभास है ॥ ५० ॥ आगैं अब आगमाभासकू कहैं हैं;

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