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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
है, परमाणुदृष्टान्तमैं अमूर्तपणां साधन असिद्ध है तातें असिद्धसाधन भया । बहुरि घटकी ज्यों, यह असिद्धसाध्यसाधन है, घट पौरुषेय भी है अर मूर्तीक भी है अर इहां साध्य अपौरुषेय है साधन अमूर्तीकपणां है तातें दोऊ घटमैं असिद्ध भये ॥ ४१ ॥ ___ आगें हैं हैं साध्यतैं व्याप्त साधन दिखावनां ऐसैं अन्वय दृष्टा. न्तका अवसरमैं कह्या था सो जहां इस” विपरीत उलटा कहै सो भी दृष्टान्ताभास है;--
विपरीतान्वयश्च यदपौरुषेयं तदमूर्तम् ॥ ४२ ॥ याका अर्थ-जहां अन्वय विपरीत कहै जैसैं जो अपौरुषेय है सो अमूर्तीक है । इहां जो अमूर्तीक है सो अपौरुषेय है ऐसैं अन्वय कहना था सो उलटा कह्या तातें यह भी दृष्टान्ताभास है ॥ ४२ ॥ आगैं याकै दृष्टान्ताभासता कैसैं है सो कहैं हैं;
विद्युदादिनातिप्रसङ्गात् ॥ ४३ ॥ याका अर्थ-विद्युत् कहिये बीजली आदिकरि अतिप्रसंगरौं दृष्टान्ताभास है जाते उलटा अन्वय कहे वीजलीकै भी अमूर्तपणांकी प्राप्ति आवै है, वीजली अपौरुषेय तौ है परन्तु मूर्तीक है ॥ ४३ ॥
आरौं व्यतिरेक उदाहरणाभासकू कहैं हैं;
व्यतिरेके सिद्धतव्यतिरेकाः परमाण्विन्द्रियसुखा. काशवतू ॥४४॥ ___याका अर्थ- पहले प्रयोगमैं ही लगाइये है-शब्द है सो अपौरुषेय है जाते याकै अमूर्तीकपणां है जो अपौरुषेय नांही सो अमूर्तीक नाही; जैसैं परमाणु है; इद्रियसुख है, आकाश है । ये व्यतिरेक दृष्टान्ताभास हैं, इनिविर्षे साध्य साधन उभय तीननिका व्यतिरेक असिद्ध है । तहां