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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
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प्रमाणान्तराद्वयावृत्येवाप्रमाणत्वस्य ॥ ६९॥
याका अर्थ---जैसे अन्य प्रमाण करि व्यावृत्ति कहिये जुदायगी करि अन्य प्रमाणकै अप्रमाणपणांका प्रसंग आवै है तैसैं ही फलक जाननां । इहां भी पहले फलमैं प्रक्रिया कही सो ही जोड़ि लेणीं। भावार्थ-जैसे प्रमाण ऐसैं कहे अप्रमाणकी व्यावृत्ति है तौ अन्य प्रमाणते व्यावृत्त प्रमाण है सो भी अप्रमाण ठहरै तब ऐसे कहै ताके मनमैं प्रमाण न ठहरै तैसैं ही विजातीय फलौं व्यावृत्त फल प्रमिति है सो ही सजातीय फल जो अन्य प्रमिति तिसरौं भी व्यावृत्त है ऐसैं अफल ही ठहरै ॥ ६९॥ ___ आगैं अभेद पक्षकू निराकरण करि आचार्य इस कथनकू संकोचैं
तस्माद्वास्तवो भेदः ॥ ७० ॥ याका अर्थ-तातें भेद है सो वस्तुभूत है, प्रमाण फलकै एकान्त करि अभेद ही नांही है ॥ ७० ॥
आरौं भेद पक्ष• दूषता संताकहैं हैं;भेदे त्वात्मान्तरवत्तदनुपपत्तेः ॥ ७१ ॥ याका अर्थ-प्रमाणकै अर फलकै सर्वथा भेद ही होते अन्य आत्माकी ज्यों यह याका फल है ऐसैं कहनां न बनै ॥ ७१ ॥
आगें वादी कहै-जो जिस आत्मविर्षे प्रमाण समवायरूप है तिस ही वि फल भी है ऐसैं समवाय संबंध करि प्रमाण फलकी व्यवस्था है ता अन्य आत्मा विर्षे ताका प्रसंग नाही, सो ऐसैं कहनां समीचीन नांही ऐसे करें हैं;
(१) मुद्रित संस्कृतटीका प्रतिमें 'प्रमाणान्तरात्' इसके स्थानमें 'प्रमाणात्' इतनाही पाठ है (२) मुद्रित संस्कृतटीका प्रतिमें " तस्माद्वास्तवोऽभेदः" ऐसा पाठ है।