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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
बहुरि श्लोकःतदीयपत्नी भुवि विश्रुताऽऽसीत्
नाणांबनामा गुणशीलधीयो । यां रेवतीति प्रथिताम्बिकेति
प्रभावतीति प्रवदन्ति सन्तः ॥२॥ याका अर्थ-तिस वैजेयकी स्त्री पृथिवीविर्षे प्रसिद्ध नाणांब ऐसा है नाम जाका ऐसी होती भई, सो कैसी है—गुणनि करि शोभायमान बुद्धि अर लक्ष्मी जाकै पाइये, बहुरि जाकू रेवती ऐसा भी नाम प्रगट कहैं हैं तथा अंविका ऐसा भी नाम कहैं हैं तथा सत्पुरुष प्रभावती ऐसा भी नाम कहैं हैं ॥२॥ बहुरि श्लोक;
तस्यामभूद्विश्वजनीनवृत्ति
दर्दानाम्बुवाहो भुवि हीरपारव्यः । स्वगोत्रविस्तारनभोंऽशुमाली
सम्यक्त्वरत्नाभरणार्चिताङ्गः ॥३॥ याका अर्थ-तिस वैजेयकी नाणांबनामा स्त्रीवि हीरपनामा पुत्र होता भया, समस्त लोककू हितकारी है वृत्ति जाकी, बहुरि दान देनेकू पृथ्वीविर्षे मेघसारिखा है बहुरि अपनां गोत्रका विस्तार सो ही भया आकाश ताविर्षे सूर्यसमान है, बहुरि सम्यक्त्वरूप रत्नका आभरणकरि शोभित है अंग जाका ऐसा होता भया ॥ ३ ॥ बहुरि श्लोक;तस्योपरोधवशतो विशदोरुकीर्ते
माणिक्यनंदिकृतशास्त्रमगाधबोधम् । (१) मुद्रित संस्कृत टीका प्रतिमें 'गुणशील सीमा' ऐसा पाठ है।