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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला ।
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है । बहुरि आरसाकी उपमा है सो जैसैं आपका अलंकार आदिकरि मंडित सुन्दरपणां अथवा विरूपपणां अरसामैं दीखै तैसैं यामैं हेय उपादेय तत्व साधन दूषण द्वार करि दीखें हैं । बहुरि परीक्षादक्षकी ज्यों कह्या सो जैसैं परीक्षावान् अपना प्रारंभ्या शास्त्रकू निर्वाहै तैसैं मैं भी निर्वाह किया है । ऐसा अर्थ है ॥ ___ आगैं टीकाकारकृत श्लोक है:अकलंकशशाधैर्यत्प्रकटीकृतमखिलमाननिभनिकरम्। तत्संक्षिप्तं सूरिभिरुरुमतिभिर्व्यक्तमेतेन ॥१॥ __ याका अर्थ-जो अकलंक आचार्य रूप चंद्रमाकरि प्रमाण अर प्रमाणभासका समूह समस्त प्रगट किया सो माणिकनांदि आचार्य. संक्षेपकरि कह्या, कैसे हैं आचार्य--बड़ी है बुद्धि जिनकी, बहुरि सो. ही मैं अनंतवीर्य आचार्य व्यक्त ( प्रगट ) किया है ॥ १॥ ऐसें परीक्षामुखनाम प्रमाणप्रकरणकी लघुवृत्ति
की वचनिकाविर्षे प्रमाणआदिका आभासका समुदेशनामा छठा परिच्छेद समाप्त
भया॥ आरौं टीकाकार इस टीकाकी उत्पत्तिके समाचार कहैं हैं;श्लोक-श्रीमान् वैजेयनामाऽभूदग्रणीर्गुणशालिनाम् ।
बदरीपालवंशालिव्योमद्यमणिरूर्जितः ॥१॥ याका अर्थ-श्रीमान् कहिये लक्ष्मीवान् वैजेयनामा गुणनिकरि शोभायमाननिविर्षे मुख्य होता भया, कैसा है—बदरीपालका वंशकी जो आलि कहिये पंक्ति परिपाटी सोही भया आकाश ताविौं सूर्यसमान महान् होता भया ॥१॥