________________
हिन्दी प्रमेयरत्नमाला ।
(छप्पय )
नमूं पंच गुरुचरन सदा मंगलके दाता, वंदूं जिनवरवानि सुनें पावै सुख साता । वीतरागता धर्म नमूं जो कर्मनाशकर,
२२३
चैत्यधाम अरु चैत्य नमूं सम्यकप्रकाशपर | ए नव वंदन योग्य हैं जिनमारग मैं नित्य ही, मैं ग्रंथ अंतमंगल निमित करी वंदना सत्य ही १४ ( दोहा ) अष्टादश शत साठि त्रय, विक्रम संवत माहिं । सुकल असाढ सुचाथि बुध, पूरण करी सुचाहि ॥ १५ ॥ लिखी है जयचंदने, सोधी सुत नंदलाल -बुध लखि भूलि जु शुद्धकरि, वांचौ सिखवौ बाल ॥ १६ ॥
इति श्री परीक्षामुख जैन न्यायप्रकरण की लघुवृत्ति प्रमेयरत्नमालाकी श्री जयचंदजीछावड़ाकृत देशभाषामय वचनिका सम्पूर्ण ।
販