Book Title: Pramey Ratnamala Vachanika
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 236
________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला। २०९ रागद्वेषमोहाक्रान्तपुरुषवचनाज्जातमागमाभासम् ५१ याका अर्थ-रागद्वेष मोहकरि सहित जो पुरुष ताका वचनकरि जो ज्ञान होय सो आगमाभास है ॥५१॥ आगैं याका उदाहरण कहैं हैं; यथा नद्यास्तीरे मोदकराशयः संति धावध्वं माणवकाः ॥५२॥ याका अर्थ-जैसैं, नदीके तीर लाडूनिकी राशि है सो हे वालक हो ! दौडो ल्यो । इहां कोई पुरुषकू वालकनिकार व्याकुल करि राख्या था तब तिनिकू अपनां लार छुडावनेंकू बहकाबनेंके वाक्य कहता भया कि-नदीकै तीर लाडूनिके ढेर हैं सो हे वालक हौ ! तुम तहां जाय ल्यो, ऐसैं कहि तिनिकू नदीकै तीर चलाये । ऐसें अपणां प्रयोजन साधनेकू. कछू कहै सो आप्तका वचन नांही तातें आगमाभास है ॥५२॥ ____ आगैं इस उदाहरणमात्रकरि संतुष्ट न होते अन्य उदाहरण कहैं ___ अंगुल्यग्रे हस्तियूथशतमास्ते इति च ॥५३ ॥ याका अर्थ-बहुरि यह उदाहरण जाननां-जो अंगुलीका अग्रभागविर्षे हस्तीनिका समूहका सैंकडा तिष्ठै है। इहां सांख्यमती अपने आगमकी वासनामैं लीन है चित्त जाका सो प्रत्यक्ष अनुमानकरि विरुद्ध सर्वही सर्व जायगां विद्यमान है ( सर्व सर्वत्र विद्यते ) ऐसैं मानता संता ऐसे वचन कहै है तातें यह अनाप्तके वचनपणांतें आगमाभास है ।। ५३ ॥ ___ आरौं इनि दोऊ वचननिकैं आगमाभासपणां कैसे है ताका हेतु कहैं हैं; हि. प्र. १४

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