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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
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रागद्वेषमोहाक्रान्तपुरुषवचनाज्जातमागमाभासम् ५१
याका अर्थ-रागद्वेष मोहकरि सहित जो पुरुष ताका वचनकरि जो ज्ञान होय सो आगमाभास है ॥५१॥
आगैं याका उदाहरण कहैं हैं;
यथा नद्यास्तीरे मोदकराशयः संति धावध्वं माणवकाः ॥५२॥
याका अर्थ-जैसैं, नदीके तीर लाडूनिकी राशि है सो हे वालक हो ! दौडो ल्यो । इहां कोई पुरुषकू वालकनिकार व्याकुल करि राख्या था तब तिनिकू अपनां लार छुडावनेंकू बहकाबनेंके वाक्य कहता भया कि-नदीकै तीर लाडूनिके ढेर हैं सो हे वालक हौ ! तुम तहां जाय ल्यो, ऐसैं कहि तिनिकू नदीकै तीर चलाये । ऐसें अपणां प्रयोजन साधनेकू. कछू कहै सो आप्तका वचन नांही तातें आगमाभास है ॥५२॥ ____ आगैं इस उदाहरणमात्रकरि संतुष्ट न होते अन्य उदाहरण कहैं
___ अंगुल्यग्रे हस्तियूथशतमास्ते इति च ॥५३ ॥
याका अर्थ-बहुरि यह उदाहरण जाननां-जो अंगुलीका अग्रभागविर्षे हस्तीनिका समूहका सैंकडा तिष्ठै है। इहां सांख्यमती अपने आगमकी वासनामैं लीन है चित्त जाका सो प्रत्यक्ष अनुमानकरि विरुद्ध सर्वही सर्व जायगां विद्यमान है ( सर्व सर्वत्र विद्यते ) ऐसैं मानता संता ऐसे वचन कहै है तातें यह अनाप्तके वचनपणांतें आगमाभास है ।। ५३ ॥ ___ आरौं इनि दोऊ वचननिकैं आगमाभासपणां कैसे है ताका हेतु कहैं हैं;
हि. प्र. १४