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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
२०७ परमाणु तौ अपौरुषेय है तातें यह तौ असिद्धसाध्य व्यतिरेक भया जातै इहां व्यतिरेक ऐसे है जो अपौरुषेय न होय सो अमूर्तीक नाही जैसैं परमाणु, सो परमाणुकै अपौरुषेयपणां साध्य व्यतिरेक न भया । बहुरि इन्द्रियसुख है सो असिद्धसाधन व्यतिरेक है जातें यह अमूर्तीक है, सो अमूर्तीकपणां साधन” व्यतिरेक नाही भया । बहुरि आकाश है सो असिद्धसाध्यसाधन व्यतिरेक है जातें यह अमूर्तीक भी है अर अपौरुषेय भी है साध्य साधन दोऊतै व्यतिरेक नांही भया । ऐसें तीन व्यतिरेकदृष्टान्ताभास कहे ॥४४॥ ___ आगें साध्यका अभाव होतें साधनका अभाव है ऐसे व्यतिरेक उदाहरणके अवसरमैं कह्या था ताविर्षे तिसतै विपरीत कहै सो भी दृष्टान्ताभास है, यह दिखावें हैं;
विपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामूर्त तन्नापौरुषेयम् ॥४५॥ . याका अर्थ---जो अमूर्तीक नाही सो अयौरुषेय नाही ऐसे कहनां सो विपरीतव्यतिरेक है । इहां जो अपौरुषेय नाही सो अमूर्तीक नाही ऐसैं कहनांथा सो उलटा कह्या तातै विपरीतव्यतिरेक दृष्टान्ताभास ही है ॥ ऐसें दृष्टान्ताभास कहे ॥ ४५ ॥ ___आरौं बालव्युत्पत्तिकै अर्थि उदाहरण उपनय निगमन ये तीन अवयव कहे थे सो अब वाल अल्पज्ञानीकू तिनि” घाटि कहै तौ प्रयोगाभास कहिये, ऐसे करें हैं;बालप्रयोगाभासः पंचावयवेषु कियद्धीनता ॥ ४६॥ ___ याका अर्थ-अनुमानके पांच अवयव अल्पज्ञकू कहनें, तिनिमैं घाटि कहै सो बालप्रयोगाभास है ॥ ४६॥
आगैं याका उदाहरण कहैं हैं;