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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला ।
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दोषही कर दूषित है हेतुका दोष प्रधान नांही । व्युत्पन्न ऐसा पक्षका प्रयोग ही न करै अर करै तौ तहां पक्षाभास कहनां, जो सिद्ध साध्य कहै तौ सिद्ध पक्षाभास कहनां, बाधित साध्य कहै तौ बाधित पक्षाभास कहनां । अकिंचित्कर हेत्वाभासका कहनां शास्त्रमैं ही प्रधान है, वाद मैं नांही ॥ ३९ ॥
आर्गै दृष्टान्त है सो अन्वय व्यतिरेकके भेदतैं दोय प्रकार का है तातैं आभास भी दोय प्रकार ही है, तहां अन्वयदृष्टान्ताभासकूं कहैं हैं; — दृष्टान्ताभासा अन्वयेऽसिद्धसाध्यसाधनो भयाः ||४०||
याका अर्थ —— दृष्टान्ताभास है ते अन्वयविषै तौ तीन है; असिद्ध साध्य, असिद्धसाधन, असिद्धसाध्यसावन ऐसें । अर इनिका अर्थ ऐसा — असिद्ध है साध्य जा विषै सो असिद्ध साध्य अन्वयदृष्टांन्ता भास कहिये, इत्यादि जाननां ॥ ४० ॥
आगैं इनि तीननिके उदाहरण एक ही अनुमानके प्रयोग विषै दिखावैं हैं;
अपौरुषेयः शब्दोऽमूर्तत्वादिन्द्रिय सुखपरमाणुघटवत् ॥ ४१ ॥
याका अर्थ-शब्द है सो अपौरुषेय है पुरुषका किया नांही जातैं अमूतक है, इहां तीन दृष्टांत हैं ते आभास हैं; इन्द्रिय सुखकी ज्यों, परमाणु की ज्यों, घटकी ज्यों । तहां इन्द्रियसुखकी ज्यों, यह तौ असिद्धसाध्य है, इहां इंद्रियसुख पौरुषेय दृष्टांत है अर अपौरुषेयपणां साध्य है सो इंद्रियसुखमैं असिद्ध है तातें असिद्ध साध्य भया । परमाणुकी ज्यों, यह असिद्धसाधन है—इहां साधन अमूर्त्तीकपणां है, सो परमाणु तौ मूर्तीक
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