Book Title: Pramey Ratnamala Vachanika
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 238
________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला । २११ __ सौगतसांख्ययोगप्राभाकरजैमिनीयानां प्रत्यक्षानु. मानागमोपमानार्थापत्यभावैरेकैकाधिकैयाप्तिवत् ५७ याका अर्थ---जैसैं बौद्ध, सांख्य, नैयायिक, प्राभाकर, जैमिनीय कहिये मीमांसक इनिमैं; बौद्धकै प्रत्यक्ष अनुमान” दोय, सांख्यकै प्रत्यक्ष अनुमान आगम ये तीन, योगकै प्रत्यक्ष अनुमान आगम उपमान ये च्यार, प्राभाकरकै प्रत्यक्ष अनुमान आगम उपमान अर्थापत्ति ये पांच, बहुरि जैमिनीयकै अभावसहित ये ही छह, ऐसा संख्याका नियम है सो इनिका व्याप्ति विषय नाही यातै व्याप्तिका ग्रहण करनेवाला तर्क प्रमाण वधै तब संख्या विगडै तैसैं चार्वाककी भी संख्या परकी बुद्धि आदि प्रत्यक्ष विषय नाही ताकू ग्रहण करनहारा अनुमान आदि वधै तब ताकी संख्या विगडै है । भावार्थजैसैं सौगतादिक प्रत्यक्ष अनुमान आदि एक एक वधता प्रमाणकरि व्याप्तिकू तर्क विना ग्रहण न करि सकै है तैसैं चार्वाक भी प्रत्यक्ष करि परवुद्धि आदिकू ग्रहण न करि सकै, ऐसा अर्थ है ॥ ५७ ॥ आगें चार्वाक आदि कहै—जो परबुद्धयादिकी प्रतिपत्ति प्रत्यक्षकरि मति होहु अन्यतै होसी, ऐसी आशंकाकरि कहैं हैं; अनुमानादेरतद्विषयत्वे प्रमाणान्तरत्वम् ॥ ५८ ॥ याका अर्थ-अनुमान आदिकार परबुद्धिका ग्रहण मानिये है तौ अन्य प्रमाणपणां आया। इहां तत् शब्द करि परबुद्धयादिकपणां है यार्ते अनुमानादिककै परबुद्धयादिक विषयपणां होतें प्रत्यक्ष एक प्रमाण है ऐसा बादकी हानि होय है ॥ ५८ ॥ आगैं इहां उदाहरण कहैं है; तर्कस्येव व्याप्तिगोचरत्वे प्रमाणान्तरत्वं, अप्रमाणस्याव्यवस्थापकत्वात् ॥ ५९॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252