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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
विसंवादात् ॥ ५४॥ याका अर्थ-जातें ऐसे वचनके अर्थवि विसंवाद है । ता” अविसंवादरूप जो प्रमाणका लक्षण ताके अभावतें ऐसे वचन आगमाभास हैं ॥ ५४ ॥ ___ आसंख्याभासकू कहैं हैं;प्रत्यक्षमेवैकं प्रमाणमित्यादि संख्याभासम् ॥ ५५ ॥
याका अर्थ-जो एक प्रत्यक्ष ही प्रमाण है इत्यादि कहै सो संख्याभास है । प्रमाण प्रत्यक्ष परोक्षके भेदकरि दोय कहे तहां तिसतै विपरीतपणांकरि कहै-एक प्रत्यक्ष प्रमाण ही है तथा प्रत्यक्ष अरु अनुमान ऐसैं दोय हैं इत्यादि नियम करै सो संख्याभास है ॥ ५५ ॥ ___ आरौं प्रत्यक्ष ही एक प्रमाण है ऐसैं कहनां कैसैं संख्याभास है ऐसे पूछे सूत्र कहैं हैं;
लोकायतिकस्य प्रत्यक्षतः परलोकादिनिषेधस्य परवुद्ध्यादेश्चासिद्धेरतद्विषयत्वात् ॥ ५६ ॥ ___ याका अर्थ-एक प्रत्यक्ष ही प्रमाण माननेवाला जो लोकायतिक कहिये चार्वाकमती ताकै परलोक आदिका निषेधकी अर परकी बुद्धि आदिकी अनुमान आदि प्रमाण विना प्रत्यक्षहीतै असिद्धि है जातें ये परलोक आदिका निषेध परबुद्धि आदि प्रत्यक्षका विषय नाही ॥ याका विस्तार पहले संख्याका निरूपणविर्षे कीया ही है सो इहां नाहीं कहिये है ॥ ५६ ॥
आगैं और वादीनिकी प्रमाणकी संख्याका नियम भी बिगडै है ऐसैं चार्वाकमतके दृष्टान्तके द्वारकरि तिनिके मतविर्षे भी संख्याभास है, ऐसें दिखाऐं हैं;--