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२०२ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचितहै । ता” शब्द कृतक है ऐसा सांख्यमती नाही जाणे है ताते याकै भी असिद्धपणां है ॥ २८॥ __ आ विरुद्ध हेत्वाभासकू दिखावता संता सूत्र कहैं हैं;विपरीतनिश्चिताविनाभावो विरुद्धोऽपरिणामी शब्दः कृतकत्वात् ॥ २९॥
याका अर्थ-विपरीत कहिये विपक्ष विर्षे है अविनाभावका निश्चय जाका ऐसा विरुद्ध हेत्वाभास है जैसैं अपरिणामी शब्द है, इहां कृतकपणां हेतु है सो अपरिणामका विरोधी जो परिणाम ताकरि व्याप्त है तातै विरुद्ध है ॥ २९॥ आगैं अनैकान्तिक हत्वाभासळू कहैं हैं;
विपक्षेऽप्यविरुद्धवृत्तिरनैकान्तिकः ॥ ३० ॥ याका अर्थ-विपक्षविर्षे भी अविरुद्ध है वृत्ति जाकी सो अनैकान्तिक हेत्वाभास है । इहां 'अपि ' शब्द ऐसैं जानिये जो केवल पक्ष सपक्षविर्षे ही याकी वृत्ति नाही है, विपक्षविौं भी है । सो यह हेत्वाभास दोय प्रकार है; निश्चित विपक्षवृत्ति, शंकितविपक्षवृत्ति ॥३०॥ __ तहां आदि भेदकू दिखावता संता सूत्र कहैं हैं;निश्चितवृत्तिरनित्यः शब्दः प्रमेयत्वाद् घटवत् ॥ ३१ ॥
याका अर्थ-जाते नित्य जो आकाश ताकै विर्यै भी याका निश्चय है, भावार्थ-इहां प्रमेयपणां हेतु है सो पक्ष जो शब्द तावि. अनित्यपणां साध्य है ताविर्षे भी है अर याका सपक्ष घट ताविर्षे भी है अर विपक्ष जो नित्य आकाश ताविर्षे भी निश्चयकरि पाइये है, तातें निश्चितविपक्षवृत्ति हेत्वाभास भया ॥ ३१ ॥ __आगैं याकी विपक्षकै विर्षे निश्चितवृत्ति कैसे है ऐसी आशंका होता सूत्र कहैं हैं;--