________________
हिन्दी प्रमेयरत्नमाला ।
भिज्ञानाभास है ॥ इहां प्रत्यभिज्ञान दोय प्रकारकाकू लेय प्रत्यभिज्ञानाभास भी दोय प्रकार कह्या; एकत्वनिबंधन, सादृश्यनिबंधन । तहां एकत्वविषै तौ सादृश्यका ज्ञान, अर सादृश्यविर्षे एकत्वका ज्ञान, सो प्रत्यभिज्ञानाभास है ॥ ९॥
आगें तर्काभासकू कहैं हैं;
असंबद्धे तज्ज्ञानं तर्काभासं यांवाँस्तत्पुत्रः सः' श्याम इति यथा ॥ १० ॥
याका अर्थ-असंबद्ध कहिये अविनाभावरहित वि अविनाभावका ज्ञान सो तर्काभास है, जैसैं काहूकै अन्य कोई पुत्र श्याम देखि कहै—याके जे ते पुत्र हैं तथा होयगे ते सर्व श्याम हैं; ऐसे व्याप्ति कहना तर्काभास है ॥ १० ॥ आगैं अनुमानभास कहैं हैं;- ।
__ इदमनुमानाभासम् ॥ ११ ॥ याका अर्थ-इदं कहिये आगैं कहैं हैं सो अनुमानाभास है ॥११॥
आशैं तिस अनुमानाभासवि. तिसके अवयवाभास दिखावनेंकरि समुदायरूप अनुमानाभासकू दिखावनेंकी इच्छाकरि पहले पहला अवयवाभास कहैं हैं;
तत्रानिष्टादिः पक्षाभासः ॥ १२ ॥
(१) मुद्रित संस्कृत प्रतिमें “यावाँस्तत्पुत्रः स श्याम इति यथा" यह पाठ सूत्र में नहीं दिया है किन्तु टीकामें दिया है और परीक्षामुख सूत्र जो अलग पुस्तककी आदिमें प्रकाशित है वहां सूत्रमेंही ऐसा पाठ दिया है। लेकिन यह पाठ सूत्र में ही होना चाहिये।