Book Title: Pramey Ratnamala Vachanika
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 225
________________ १९८ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित___ याका अर्थ-तिनि अवयवनिवि अनिष्ट आदि शब्दकरि वाधित प्रसिद्ध ये पक्षाभास हैं । इष्ट अबाधित असिद्ध लक्षण साध्य पूर्वै कह्या था सो ही पक्ष कह्या था ॥ १२ ॥ आशैं तिनि” विपरीत तदाभास है, ऐसे करें हैं;अनिष्टो मीमांसकस्यानित्यः शब्दः ॥ १३ ॥ याका अर्थ-अनिष्ट पक्षाभास तौ मीमांसककै शब्द अनित्य है। मीमांसक शब्दकू नित्य मानें है सो अनित्य कहै तौ ताकै अनिष्ट है॥१३॥ आरौं असिद्ध विपरीत सिद्ध पक्षाभास कहैं हैं; सिद्धः श्रावणः शब्दः ॥ १४ ॥ याका अर्थ-शब्द है सो श्रावण है, ऐसैं पक्ष कहै तौ सिद्ध पक्षाभास है जातै शब्द तौ सुननेमैं आवै है सो श्रावण है ही फेरि साधै तौ सिद्ध पक्षाभास है ॥ १४ ॥ आU अवाधित” विपरीत वाधित पक्षाभासकू कहते संते सो प्रत्यक्ष आदि प्रमाणकरि वाधित है ऐसें दिखावते संते सूत्र में हैं;बाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः ॥ १५ ॥ याका अर्थ--वाधित पक्ष है सो प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, लोक, स्ववचन, इनि करि है तातैं बाधित पक्षाभास पंच प्रकार जाननां ॥१५॥ आरौं इनिका अनुक्रमकरि उदाहरण कहैं हैं:तत्र प्रत्यक्षबाधितो यथा, अनुष्णोऽग्निद्रव्यत्वाजलवत् ॥१६॥ याका अर्थ-तिनि विर्षे प्रत्यक्ष वाधित-जैसैं अग्नि है सो अनुष्ण कहिये शीतल है जाते याकै द्रव्यपणां है जैसैं जल शीतल है तैसैं ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252