Book Title: Pramey Ratnamala Vachanika
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 223
________________ १९६ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित - याका अर्थ-अविशदपणां होते प्रत्यक्ष मानैं सो प्रत्यक्षाभास है जैसैं बौद्धमतीकै अकस्मात् निश्चय भये विनाही धूम देखने” अग्निका विज्ञान बौद्ध निर्विकल्प प्रत्यक्ष मानें है जैसैं धूमकी परीक्षा निश्चय विना अग्निका अनुमान करै । सो विना निश्चय तदाभास है तैसैं प्रत्यक्षाभासही है प्रमाण नाही ॥६॥ आज परोक्षाभासकू कहैं हैं;वैशद्येऽपि परोक्षं तदाभासं मीमांसकस्य करणज्ञानवत् ॥७॥ ___याका अर्थ-जहां वैशद्य होय तहां भी परोक्षमानैं सो परोक्षाभास है जैसैं मीमांसक करणज्ञान विशद है तोऊ ताकू परोक्ष मानें है तैसैं । यहु पहले विस्तारकरि कह्या ही है ॥७॥ __ आगें परोक्षके भेदाभासकू कहते संते क्रममैं आया जो स्मरणा भास ताकू कहैं हैं;__ अतस्मिँस्तदिति ज्ञानं स्मरणाभासं जिनदत्ते स देवदत्तो यथा ॥८॥ __याका अर्थ-जो अनुभवविर्षे आया नांही ताका स्मरणा सो स्मरणाभास है जैसैं जिनदत्त पुरुषकू पूर्वै देख्या था अर यादि देवदत्तकू किया ' जो सो देवदत्त ' एसैं ॥ ८॥ आगैं प्रत्यभिज्ञानाभासकू कहैं हैं; सदृशे तदेवेदं तस्मिन्नेव तेन सदृशं यमलकवादित्यादि प्रत्यभिज्ञानाभासम् ॥९॥ याका अर्थ-सदृश विर्षे तौ सो ही यहु है अर तिस ही वि यहु तिस सारिखा है जैसैं दोयका जुगल विर्षे एक देखै इत्यादि प्रत्य

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