Book Title: Pramey Ratnamala Vachanika
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 189
________________ १६२ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचितहै वस्तुभूत नाही । सो हमारे कह्या है, ताका श्लोकका अर्थः-जो पदार्थ एक जायगां देखिये सो अन्य जायगां कहूं न देखिये है तातें बुद्धि विर्षे अभेदकल्पना सो ही सामान्य है, यानै भिन्न और कछू नाही है। बहुरि बौद्ध ही कहैं है:-ते विशेष परस्पर संबंधरहित ही हैं जातें तिनिकै संबंध विचारया हुवाका अयोग है। जो एकदेशकरि विशेषनिकै संबंध कहिये तो एक परमाणुकै छहौंही दिशातैं छह परमाणुका एककाल संयोग होतें परमाणुकै छह अंशपणांकी प्राप्ति होय, सो परमाणुकै छह अंश कहनां संभवै नांही । बहुरि सर्वस्वरूपकरि संबंध कहिये तौ पिंडकै अणुमात्रपणांका प्राप्ति आवै । बहुरि अवयवीका भी निषेध है । तारौं विशेषनिकै परस्पर संबंध नाही वर्षे है । बहुरि अवयवीका निषध ऐसे है-जो वृत्तिविकल्प कहिये अवयवीकी अवयवनिविर्षे वृत्तिका विचार ताकरि तथा अनुमानकरि बाधाही आवै है । सो ही कहिये है, बौद्ध नैयायिककू कहै है—अवयव हैं ते अवयवीविर्षे वत्र्ते हैं यह तौ तैं मानीही नाही है बहुरि अवयवी है सो अवयवनिविौं वत्” है ऐसैं मानी है; सो इहां दोय पक्ष पूछिये है-जो एकदेशकरि वर्ते है कि सर्वस्वरूप करि वत्र्ते है ? जो कहै एकदेशकरि वत्त है तौ अवयवीकै अवयवनि सिवाय अन्य अवयवका प्रसंग आवै, बहुरि तिनि विर्षे भी अन्य एकदेशकरि अवयवी वत्तै तब अनवस्था पावै । बहुरि कहै सर्व स्वरूपकरि अवयवी अवयवनि विषै वत्” है,-तौ पूछिये-एक एक अवयव प्रति स्वभावभेदकरि वर्ते है कि एकरूपकरि वत्र्ते है ? जो कहै (१) तदुक्तम् एकत्र दृष्टो भावो हि क्वचिन्नान्यत्र दृश्यते । तस्मान्न भिन्नमत्स्यन्यत्सामान्यं बुद्धयभेदतः॥१॥

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