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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
१७३ कीजिये है । इहां तुम कहोगे-द्रव्य आदिक प्रमाण सिद्ध नही है तौ तुमारे हेतुकै आश्रयकी असिद्धि आवैगी, ताका उत्तर आचार्य कहैं है-जो यह कहना अयुक्त है जानैं इहां हमनें प्रसंगसाधन किया है। परका इष्ट लेकरि परकै अनिष्ट बतावनां सो प्रसंगसाधन है, सो इहां प्राक् अभावादिविर्षे सत्त्वतै भेद है सो असत्त्वतें व्याप्त पाइये है सो व्याप्य है, ताक् तिस भेदका द्रव्यादिवि अंगीकार है सो व्यापक जो असत्त्व ताका अंगीकारतें अविनाभावी है, ऐसैं इहां प्रसंगसाधन है। तारौं नैयायिक. कह्या प्रमाणवाधित आदि दोष, सो नाही आवै है, पदार्थानकू नैयायिक जैसैं भेदाभेद मानै था तिसहीकी अपेक्षा लेकरि प्रसंगसाधन किया है । इसही कथनकरि द्रव्य आदिककै भी द्रव्यपणांत भेद होते अद्रव्यादिपणां विचरया जाननां । बुहुरि आचार्य नैयायिकळू पूछे है--कि द्रव्य गुण कर्म सामान्य विशेष समवाय इनि छह पर्दाथनिकै परस्पर भेद होते न्यारे न्यारे अपनें स्वरूपकी व्यवस्था कैसे है ? जो कहैगा-द्रव्यका द्रव्य ऐसा नाम द्रव्यत्वका संबंधते हैं तौ द्रव्यत्वके संबंध पहले द्रव्यका स्वरूप कहा है, सो कह्या चाहिये जाकारि सहित द्रव्यत्वका संबंध होय ? जो कहै-द्रव्य ही स्वरूप है तौ तिसका द्रव्य ऐसा नाम तो द्रव्यत्वका संबंधरूप कारणतें होय है तातें द्रव्य ऐसा स्वरूपका अयोग है । बहुरि कहै-जो निजरूप तौ सत्त्व है तो ताका भी सत्त्व ऐसा नाम सत्ताके संबंधतें करनेते द्रव्यका निजरूप नांही बनेंगा । ऐसे ही गुण आदिविषै भी कहि लेनां । ऐसें होतें केवल सामान्य विशेष समवाय इनि तीन हीकै स्वरूप सत्त्व करि तसौ नाम बनैं है, तातै तिनि तीन ही पदार्थनिकी व्यवस्था ठहरै है । बहुरि इहां नैयायिक कहै है-नैयायिक वैशेषिकका अभिप्राय एक ही है तातें नैयायिक ही नाम लिख्या है, इहां सामान्य नाम यौगमत जाननां, अर द्रव्यादिक सप्त ही पदार्थ वैशेषिक कहै है। अब वह कहै है