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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
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रण भासुर प्रकाशपणां आदि गुण जाकै ऐसा दीपक है तैसैं ही देवदत्त पुरुषका देह विषै ही अर देह विर्षे सर्वत्र ही आत्मा है, आत्माके असाधारण गुण ज्ञान दर्शन सुख वीर्य हैं ते सर्वांगविषै तिस देह विर्षे ही पाइय हैं । इहां देह विर्षे ही आत्मा है ऐसा कहनें तें तौ व्यापकका निषेध भया, अर देह विषै सर्वत्र है ऐसैं कहनें बटकणिका मात्रका निषेध भया । इहां श्लोक है ताका अर्थ—सुख है सो तौ आल्हादनके आकार है, विज्ञान है सो मेय कहिये जानने योग्य वस्तुका जानना है, शक्ति है सो क्रिया करि अनुमानमैं आवै है जैसे तरुण पुरुषकै स्त्रीका समागमविर्षे होय है, आनंद अर जाननां अरु सामर्थ्य ये तीनूं तहां ताकै प्रकट देखिये हैं ऐसा वचन है। तातैं आत्मा अपनी देहकै प्रमाण ही निश्चित भया ॥ ८ ॥ ___ आ विशेषका दूसरा भेदकू कहै है;
अर्थान्तरगतो विसदृशपरिणामो व्यतिरेको गोमहिषादिवत् ॥९॥ ___ याका अर्थ-अन्य अन्य पदार्थ विर्षे पाइये ऐसा विसदृश परिणाम है सो व्यतिरेकनामा विशेष है, जैसैं गऊ भैसि आदि न्यारे न्यारे विलक्षण परिणाम स्वरूप हैं तैसैं । जातें विसदृशपणां है सो प्रतियोगीके ग्रहण होते ही होय है जैसैं गऊतै भैसि विसदृश है । इहां गऊ प्रतियोगी है ताका ग्रहण है। बहुरि या विसदृशपणांकै परकी अपेक्षा स्वरूप होते वस्तुपणां नांही है, अवस्तुविषै तो आपेक्षिकपणांका अयोग है जातें अपेक्षाकै वस्तुनिष्ठपणां ही है अवस्तुबिर्षे अपेक्षा नाही होय है ॥ ९॥
ऐसैं प्रमाणके विषयका निरूपण किया । (१) सुखमाल्हादनाकारं विज्ञानं मेयबोधनम् ।
शक्तिः क्रियानुमेया स्याङ्नः कान्ता समागमे ॥