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अथ पंचम समुद्देश।
[५] आगैं प्रमाणके फलकी विप्रतिपत्तिका निराकारणकै आर्थ सूत्र कहैं हैं;
अज्ञाननिवृत्तिहानोपादानोपेक्षाश्च फलम् ॥१॥ याका अर्थ-अज्ञानकी तो निवृत्ति कहिये अभाव होना बहुरि हान कहिये त्याग अर उपादान कहिथे ग्रहण अर उपेक्षा कहिये उदासीनता वीतरागता एते प्रमाणके फल हैं ॥ तहां फल दोय प्रकार है साक्षात् कहिये लगता ही, अर पारंपर्य कहिये परंपरा करि । तहां साक्षात् तौ अज्ञानका नाश होनां फल है जाते वस्तुका यथार्थ ज्ञान होय तिस ही काल अज्ञानका नाश होय है, करणरूप ज्ञान सो तौ प्रमाण है अर क्रियारूप जाननां सो फल है सो ही अज्ञानकी निवृत्ति है । बहुरि परंपराकरि ग्रहण त्याग अर वीतरागता ये फल हैं जातें प्रमेय वस्तुका निश्चय भये पीछे होय है । सो यहु दोय प्रकारका ही फल प्रमाणतें भिन्न ही है ऐमैं तौ नैयायिक मानें हैं । बहुरि प्रमाणतें अभिन्न ही है ऐसैं बौद्धमती मानें हैं ॥ १ ॥
तिनि दोऊनिका मत निराकरण करि अपनां मत स्थापना सूत्र कहैं हैं;
प्रमाणादभिन्नं भिन्नं च ॥ २॥.