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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला ।
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याका अर्थ — अनुवृत्त कहिये अन्वयरूप अर व्यावृत्त कहिये न्यारा यारा रूप इनिका जो प्रत्यय कहिये ज्ञान मैं प्रतीति ताकै गोचरपणांतैं,
हुरि पूर्व परिणामका छोडनां उत्तर परिणामका ग्रहण करनां इनि दोऊनिकरि सहित स्थितिरूप सो है लक्षण जाका ऐसा जो परिणाम तिसकरि अर्थ क्रियाकी प्राप्ति है तातैं । तहां अनुवृत्त आकार तौ जैसैं अनेक गऊ विषै गऊ गऊ ऐसी प्रतीति, सो है । बहुरि व्यावृत आकार कहिये यह गऊ श्याम है यह काबरा है ऐसैं न्यारी न्यारी प्रतीति, सो है । तिनि दोऊ प्रतीतिनिकै गोचर कहिये विषय ताका भाव तातैं अनेकांतात्मक वस्तु है । इस हेतुकरि तौ तिर्यक् सामान्य अर व्यतिरेकलक्षण विशेष इनि दोऊ स्वरूप वस्तु साध्या । बहुरि पूर्व आकारका त्याग उत्तर आकारकी प्राप्ति अर इनि दोऊनिकरि सहित स्थिति सोही है लक्षण जाका ऐसा जो परिणाम तिसकरि अर्थ क्रियाकी उपपत्ति है, त्तातैं सामान्यविशेषात्मक वस्तु है । इस हेतुकरि ऊर्द्धता सामान्य अर पर्यायनामा विशेष इनि दोऊ रूप वस्तु समर्थ्या है ॥ २ ॥
आगैं पहले कह्या जो सामान्य ताका भेदकूं कहैं हैं;
सामान्यं द्वेधा तिर्यगूर्द्धताभेदात् ॥ ३ ॥ याका अर्थ- - सामान्य दोय प्रकार है; तिर्यकू सामान्य, ऊर्द्धता सामान्य ऐसैं भेदतैं ॥ ३ ॥
आगैं पहला भेद जो तिर्थकू सामान्य ताकूं उदाहरणसहित कहै है:
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सदृशपरिणामस्तिर्यक् खंडमुंडादिषु गोत्ववत् ॥४॥
याका अर्थ —सदृश कहिये सामान्य जो परिणाम सो तिर्यक् सामान्य है जैसैं अनेक खांडी मूंडी गऊ हैं तिनिविषै गऊपणां है । तहां