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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
बहुरि पूर्व उत्तर क्षणनिकैं एक संतानकी अपेक्षा करि भी क्रम नाही संभवै है जातें जो संतानकू वस्तुभूत मानें तौ तिसकै भी क्षणिकपणां ठहरै तब तिसकी अपेक्षा क्रम नाही वर्षे है । अर अक्षणिकपणां होते भी वस्तुभूतपणां मानें तौ वस्तुभूतपणां करि तिस संतानही करि सत्त्व आदि हेतुकै अनैकान्तिकपणां आवै । बहुरि सन्तानकू अवस्तुभूत मानें तौ भी तिसकी अपेक्षा क्रमयुक्त नाही होय । बहुरि युगपत्पणां करि भी क्षणिक विषै अर्थक्रिया नांही संभव है । इहां दोय पक्ष--जो युगपत् एक स्वभाव करि नानाकार्य करणां मानिये तो तिसके कार्यकैं एकपणां ठहरै, बहुरि जो नानास्वभाव कल्पिये तो ते स्वभाव तिसक्षण करि व्यापे चाहिये । सो जो एक स्वभाव करि ते क्षणिक तिनि स्वभावनिमैं व्यापै तौ तिनि स्वभावनिकै एकरूप ठहरै, बहुरि जो नानास्वभाव करि व्या तौ अनवस्था दूषण आवै जातै फेरि एक स्वभाव अनेक स्वभावका प्रश्न चल्या जाय । बहुरि बौद्ध कहै है जो एक पूर्व क्षणकै एक उत्तर क्षणविर्षे उपादानभाव है सो ही अन्य जे रूप” रसादिक तिनिवि तिसक्षणकैं सहकारी भाव है यह ही स्वभाव भेद है; तौ ताकू आचार्य कहैं हैं:--नित्य एकरूप वस्तुकैं भी क्रमकरि नानाकार्य करनेवालेकै स्वभावका भेद अर कार्यका संकरपणां मति होहु, ऐसा दूषण तैं कह्या था सो मति होहु । इहां बौद्ध कहै जो अक्रम” क्रमवान् वस्तुकी उत्पत्ति नाही तारौं नित्यकै ऐसैं नाही, तो ताकू कहिये-तैसैं ही क्रमरहित जो क्षणिक सो एक है अनंश है ऐसे कारण” युगपत् अनेक कारणनिकरि साधने योग्य जे अनेक कार्य तिनिका विरोध है, तातै तामैं भी कार्यकारीपणां नांही है । बहुरि विशेष कहैं हैं, बौद्धकू पूछ है तेरे पक्ष विष कार्यकारीपणां सत्कै. मान है कि असत्कै मानें है ? जो सत्कै कार्यका कर्त्तापणां मानें है