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स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित
ती सकलकालकी कला विर्षे व्यापीजे क्षण तिनिकै एकक्षणवर्तीपणांका प्रसंग आवेगा । बहुरि जो दूसरा पक्ष असत्कै कार्यकारीपणां मानेंगा तौ गधाकै सींग आदिकैं भी कार्यकारीपणां ठहरैगा जानैं गधाका सींग भी असत्रूप है, यामैं विशेष नाही । बहुरि सत्त्वका लक्षण अर्थक्रियाकारीपणां है सो असत्कै कार्यकारीपणां मान ताकै व्यभिचार आबैगा । तातें विशेष एकांत है सो कल्याणकारी श्रेष्ठ नांही । ऐसैं विशेष एकान्त माननेवाला जो बौद्धमत ताकी पक्षका निराकरण किया, यातें विशेष एकान्त वस्तुस्वरूप नाही तातै प्रमाणका विषय नाही है । इहां तांई बौद्धमतीतूं चर्चा है। ___ आगैं नैयायिकतूं चर्चा करें हैं;-अब कहैं हैं-जो सामान्य विशेष दोऊ परस्पर अपेक्षारहित हैं ऐसैं नैयायिकमती मानें हैं सो तिनिका मत भी युक्तिकरि युक्त नाही है, सो कहैं हैं जातै तिनिकै परस्पर भेद होतें दोऊमैं एकका भी स्थापन करनेका असमर्थपणां है । सो ही कहिये है;-विशेष कहिये व्यक्तितें तौ प्रथम द्रव्य गुण कर्म पदार्थ हैं । बहुरि सामान्य पर अपर भेद दोय प्रकार है । तहां परसामान्य तौ सत्तास्वरूप है तिसौं विशेषनिकै भेद होते विशेषनिकै असत्ताकी प्राप्ति आई, तैसें ही प्रयोग है-द्रव्य गुण कर्म हैं ते असत् रूप हैं—जारौं सत्तारौं अत्यंत भिन्न हैं जैसैं प्राक् अभावादिक अभाव हैं तैसैं । इहां सत्तातै अत्यंत भिन्नपणां हेतु है ताकै सामान्य विशेष समवाय पदार्थनिनै व्यभिचार नाहीं है जाते तिनि विर्षे स्वरूप सत्त्वकू अभिन्न नैयायिक मानें हैं। बहुरि नैयायिक कहै है-जोद्रव्यादि पदार्थनिकै प्रमाणकरि सिद्धपणां है तौ धर्मीका ग्राहक प्रमाण ताकरि तुमनें हेतु कह्या सो वाधित है, जिस प्रमाणकरि द्रव्य आदिक निश्चय कीजिये है तिसही प्रमाणकरि तिनिका सत्त्व निश्चय