________________
हिन्दी प्रमेयरत्नमाला ।
निरपेक्ष ही है ? ताकू कहैं हैं—जो कपाल आदि पर्यायांतरका सद्भाव है सो ही घट आदिका अभाव है। बहुरि तुच्छाभाव कहिये सर्वथा अभाव, सो समस्तप्रमाणकै अगोचर है ताकी बात ही न करनी । बहुरि विशेष कहै है—अभाव है सो जो स्वाधीन होय तौ अन्यकी अपेक्षारहितपणां विशेषणयुक्त होय, सो बौद्धमतविर्षे सो अभाव स्वाधीन मान्यां नाही यातॆ हेतुका प्रयोगकाही अवतार नाही । बहुरि यह अन्यानपेक्षपणां हेतु है सो अनैकान्तिक है जानै शालिके बीजकै कोदूंका अंकुरका उपजनां प्रति अन्यकी अपेक्षारहितपणां है तौऊ तिस कोदूंके अंकुराके उपजनेंके स्वभाव प्रति नियमरूपपणां नांही है । बहुरि बाद्ध कहै—जो हेतुका विशेषण ऐसा किये दोष नाही, जो विनाश स्वभाव होते अन्यानपेक्ष है तौ तहां कहिये पदाथक सर्वथा विनाशस्वभावपणां ही असिद्ध है । पर्यायरूपकरि ही पदार्थनिकै उत्पाद विनाश मानिये है द्रव्यरूपकरि उत्पाद विनाश नांही है, जातैं ऐसा वचन है ताका श्लोकका अर्थः
जो पदार्थ उपजै है अर विनशै है सो यर्यायनयका विषय है, बहुरि द्रव्यनयकरि आलिंगित वस्तु नित्य है न उपजै है न विनशै है । अन्वय कहिये पहिले पिछलेकै जोड तिसरहित जो विनाश सो निरन्वयविनाश तिसकू होते पहले क्षण” उत्तर क्षणकी उत्पत्ति नाही वर्षे है, जैसैं सूवा मोरकी कुहुक नाही होय तैसैं । ऐसे पदार्थनिका सर्वथा विनाशस्वभावपणां युक्त नांही जाते कथंचित् द्रव्यरूपकरि पूर्वरूप जानैं न
(१) आर्या-समुदति विलयमृच्छति भावोनियमेन पर्ययनयस्य । नोदेति नो विनश्यति भावनया लिंगितो नित्यम् ॥१॥
इति वचनात् ।