________________
१४८ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचितहै, ताका श्लोक है ताका अर्थः- "जिस वस्तुके स्वरूपवि पांच प्रमाण न उपजै तहां वस्तुका अभावका ज्ञान होनेंकै अर्थि अभावकै प्रमाणता है, ऐसे कया है" | तातै वादीक तौ वेदका कर्ताका अस्मरण नाही वर्षे है । बहुरि दूजा पक्ष जो प्रतिवादीकै है ऐसैं कहै । तौ ताकै भी नाही वर्षे है जाते प्रतिवादी कर्ता वेदका स्मरण करही है। बहुरि सर्वहीकै कहै तौ भी नाही वणै है जारौं वादीकै वेदका कर्ताका अस्मरण है तौऊ प्रतिवादीकै स्मरण है ॥ बहुरि मीमांसक कहैं हैजो प्रतिवादी वेदविर्षे अष्टकदेवकू आदि देकरि बहुत कर्ता स्मरैं हैं, यातें स्मरणकै विवादतै प्रमाणता नांही है, तातै सर्वक कर्ताका अस्मरणही सिद्ध होय है। ताकू कहिये-जो कर्ताका विशेषविही विवाद है कर्त्तासामान्यविषैतौ विवाद है नांही यातै सर्वकै कर्ताका अस्मरण असिद्ध है । बहुरि सर्व प्राणीनिके ज्ञानका विज्ञानकरि रहित जो अल्पज्ञ पुरुष सो सर्वकै कर्ताका अस्मरण कैसे जानें । तातै वेदविर्षे अपौरुषेयपणांका स्थापनेंका असमर्थपणां है । तातें आगमका लक्षण किया ताकै अव्यापकपणां नांही है । बहुरि असंभवीपणां दूषणभी नांही है पौरुषेयपणां साधनेंविर्षे प्रमाण बहुत हैं, सोही कहै हैं; वृहत्पंचनमस्कारनामा स्तोत्र पात्रकेसरीकृत है ताकी काव्यका अर्थ;जातें जन्ममरणसहित जे ऋषि तिनिके गोत्र आचरण आदि नाम
. १-प्रमाणपञ्चकं यत्र वस्तुरूपेण जायते।
वस्तुसत्तावबोधार्थ तत्राभावप्रमाणता ॥ इति २-सजन्ममरणर्षिगोत्रचरणादिनामश्रुते
रनेकपदसंहतिप्रनियमसन्दर्शनात् । फलार्थिपुरुषप्रवृत्तिनिवृत्तिहेत्वात्मनां श्रुतेश्च मनुसूत्रवत्पुरुषकर्त्तकैव श्रुतिः ॥ इति