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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला
१४७ in | अरबौद्ध कर्त्ता मानैं है तातैं अपौरुषेयपणां नांही तौ इसही हेतु वेदविषै अपौरुषेयपणां मति होहु । बहुरि जो कहै कर्त्ता के अभावतैं है तौ जे कर्त्ताका अभाव कर्त्ताके अस्मरण तैं मानैं तौ यामैं इतरेतराश्रय दूषण आवै है, कर्त्ताका अभाव तैं तौ तिसका अस्मरण सिद्ध होय अर तिसके अस्मरणतैं तिसका अभाव सिद्ध होय । बहुरि कहै — कि प्रमाणपणांकी अन्यथा अप्राप्ति तैं तिसका अभाव सिद्ध होय है जो कर्त्ता होय तौ प्रमाणपणां न होय ऐसें इतरेतराश्रय नांही आवै है। तौ ऐसैं नांही है जातैं अप्रामाणका कारण जो पुरुषविशेष ताहीका प्रामाण्यकरि निराकरण है, पुरुषमात्रकातौ निराकरण है नांही । बहुरि कहै जो अतीन्द्रिय पदार्थके देखने वालाका अभाव अन्य पुरुषविशेषकै प्रमांणपणांका कारणपणांकी अप्रप्ति है यातैं सर्वथा पुरुषका अभाव सिद्धही है । तौ ताकूं कहिये –— जो सर्वज्ञका अभाव काहे तैं है ? जो कहै प्रमाणपणांकी अन्यथा अप्राप्ति तैं सर्वज्ञका अभाव है तौ इतरेतराश्रयपणां है, बहुरि कहै कर्त्ता के अस्मरणतैं है तौ चक्रकनामा दूषण है । वेदविषै कर्त्ताके अस्मरणतैं तौ सर्वज्ञका अभाव सिद्ध होय, बहुरि सर्वज्ञका अभाव सिद्ध होय तब वेदक प्रमाणपणांकी अन्यथा अनुपपत्ति सिद्ध होय और जब प्रमाणापणांकी अन्यथा अनुपपत्ति सिद्ध होय तब कर्त्ताका अभाव सिद्ध होय तिसकूं सिद्ध होतैं कर्ताका अस्मरण सिद्ध होय ताके सिद्ध होते फेरि सर्वज्ञका अभाव सिद्ध होय, ऐसैं चक्रकका प्रसंग होय है । बहुरि है सर्वज्ञका अभाव अभावप्रमाणतैंसिद्ध होय है । तौ ताकूं कहिये- - जो सर्वज्ञका साधक अनुमान प्रमाणका प्रतिपादन पहले किया ही था तातैं अभावप्रमाणके उत्थानका अयोग है जातैं पांच प्रमाण भावरूप हैं तिनिका अभाव होय तब अभाव प्रमाणकी प्रवृत्ति होय, ऐसैं मीमांसकनैं कह्या
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