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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला । होतें भी देखिये हैं तौ अर्थके कहनहारे शब्द कैसैं ? ताकू आचार्य कहैं हैं-यह भी कहना अयुक्त है जाते जे अर्थके कहनहारे शब्द नांही है तिनि” अर्थके कहनहारे शब्द अन्य ही हैं, सो अन्यकै व्यभिचार होतें अन्यकै कहनां युक्त नाही, जाते यामैं अतिप्रसंग दूषण आवै है । जो ऐसैं न मानिये तो इन्द्रजालके घडेमैं धूम होतें भी अग्नि नाही ऐसे व्यभिचार होते पर्वत आदिके वि धूम होय ताकै भी व्यभिचारका प्रसंग ठहेरे । बहुरि जो कहै—यत्नः परीक्षा किया कार्य कारण• उलंघि वत्र्ते नाही, तो ऐसैं इहां भी समान जाननां, जो शब्द जिस अर्थमैं होय तिसकू ही कहै है नीक परीक्षा किया शब्द है सो अर्थकू नांही व्यभिचरै है। ऐसे होते अन्यका निषेधकै शब्दार्थपणांकी कल्पना है सो प्रयासमात्र ही है। बहुरि अन्यापोह कहिये अन्यका निषेध शब्दका अर्थ नाही ठहरे है जातें प्रतीतिविरोध है प्रतीतिमैं ऐसैं आवता नाही । जातैं गौ आदि शब्दके सुनने तैं यह अन्य नांही ऐसा सामान्य अभाव जो तुच्छाभाव सो तौ प्रतीतिमैं आवै है नाही' तिस गऊ शब्दतै सास्नादिमान पदार्थविर्षे प्रतीति देखिये है, गऊतै अन्यकी बुद्धि जातें होय ऐसा तहां अन्य शब्द ल्यावनां । बहुरि कहै—एक ही गऊ शब्दतै दोय अर्थकी प्रतीतिका संभावन है तातें अन्य शब्द ल्याव नेते प्रयोजन नाही । ताकू कहिये—जो ऐसे नाही, एक शब्दकै दोय विरुद्ध अर्थके कहनेका विरोध है असंभव है। बहुरि विशेष कहै है-जो गऊ शब्दकै गऊतै अन्यकी ब्यावृत्ति विषय होते पहले तौ गऊ नाही ऐसी प्रतीति आवै है, सो ऐसैं तो वनैं नाही लोककै तौ पहले ही गऊ अर्थकी प्रतीति होय है यातै अन्यापोह शब्द का अर्थ नाही । बहुरि विशेष कहै है-जो अपोह कहिये निषेध सो सामान्य है, तौ शब्दका अर्थपणांकी प्रतीतिमैं लिया हुवा पर्युदास प्रतिषेधरूप