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हिन्दी प्रमेयरत्नमाला।
गऊ आदि शब्दनिका प्रसज्यप्रतिषेध होय तब कोई बाह्य पदार्थ विषै प्रवृत्तिका प्रयोग होय, अर तुच्छाभाव मानिये तौ नैयायिकमतका प्रवेशका प्रसंग आवै । बहुरि विशेष कहैं हैं-जो गऊ आदिक जे सामान्य शब्द हैं, बहुरि जे शाबलेय कहिये काबरा आदिक विशेष शब्द हैं तिनिकै बौद्धके अभिप्रायकरि पर्यायशब्दपणां आवै अर्थका भेदका अभाव ठहरै जातें एक अपोह ही सर्व शब्दनिका अर्थ ठहरै, जैसैं वृक्षका दूसरा नाम पादप इत्यादि पर्याय शब्द हैं तिनिका अर्थ न्यारा नाही तैसैं ठहरै । बहुरि तुच्छा भाव कहिये सर्वथा अभाव ताकै विषै भेद युक्त नांही है । संसृष्टत्व, एकत्व, नानात्व भेद हैं ते तौ वस्तु ही विर्षे प्रतीत्तिमैं आवें हैं । बहुरि अभावविर्षे भेद मानिये तौ वस्तुपणांकी प्राप्ति आवै है जातै वस्तुपणांका लक्षण भेद स्वरूप है । बहुरि निषेध करने योग्य जे गऊ शब्दकैं अश्व आदिक ते ही भये संबंधी तिनिके भेदतै अभावमैं भेद कहै तो यह वर्णं नाही जातै प्रमेय अभिधेय आदिक जे विधिरूप शब्द हैं तिनिकी प्रवृत्तिका अभावका प्रसंग आवै । जातै प्रमेय आदि शब्दनिकै 'व्यवच्छेद्य' कहिये निषेध करने योग्य अप्रमेय आदि है सो ताके अतद्रूपकरि भी अप्रमेय आदिरूपपणां होते तिस अप्रमेय आदितै व्यवच्छेदका अयोग है, तातें तहां प्रमेय अभिधेय इत्यादि शब्द वाच्य अपोहविर्षे संबंधीके भेदतै भेद कैसैं होय । बहुरि विशेष कहै है-शावलेय काबरा आदि शब्दनिविर्षे अपोह कहिये निषेध सो एक ही नांही ठहरै है जातें व्यक्ति व्यक्ति वि. न्यारा न्यारा ही ठहरै है । बहुरि कहै-जो काबरा आदि शब्द अपोहका भेद नाही करैं हैं तौ ताकू कहिये--अश्व आदि शब्दभी भेद करनेवाले मति होहु जाकै अपने सामान्यमांही जे काबरा आदि गुण ते भेद करनेवाले नाही, ताकै अश्व आदि भेद करनेवाले कहनां तो अति